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Poem on Holi in Hindi

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"Poem on Holi in Hindi" होली पर लिखी गयी प्रेममयी कविता है|   होली का त्यौहार प्रेम, सद्भाव, समर्पण व त्याग का महापर्व है। बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में भी यह पर्व हम सब मनाते हैं| होली का त्यौहार पूरे विश्व में खुशियां, शांति और मानवता का संचार करे; ऐसी मेरी कामना है। कविता  - होली  इंतज़ार आज ख़त्म हुआ,  लो आ गई है होली। इंतज़ार आज ख़त्म हुआ,  लो आ गई है होली। हम सब सारे एक समान,  आओ खेलें हम होली‌ आओ खेलें हम होली।। Also read another Poem - "मोक्ष " बुराई पर अच्छाई का पर्व ये , प्रेम, भाईचारे का है उत्सव।  इंद्रधनुष सा रंग बिखेरती , बहुआयामी होली। बहुआयामी होली।। इसमें मानव-कल्याण की चाहत, ध्यान रखें न हो कोई आहत। एक साल की प्रतीक्षा पश्चात् , है आ गई ये होली। है आ गई ये होली।। ये रंग हैं छूते दिल के तार को, हैं स्रोत उमंग-तरंग के। हर दिन भरा रहे रंगों से, हम सब की है होली।  हम सब की है होली।।             - कृष्ण कुमार कैवल्य।

Poem on Primary-School in Hindi

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 Poem on Primary-School in Hindi - " हमारा प्राथमिक स्कूल" बच्चों के लिए एक यादगार कविता है|   इस  कविता के माध्यम से प्राथमिक विद्यालय की असीम महिमा का गुणगान किया गया है|  निःसंदेह प्राथमिक विद्यालय विद्यार्थियों की शिक्षा का आधार स्तम्भ है| जिस पर किसी भी व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन टिका होता है| उक्त कविता के केंद्र में  केंद्रीय विद्यालय को रखा गया है|  यादों के झरोखों से इस कविता को प्रस्तुत करने की मेरी ये एक छोटी सी कोशिश है| कविता -  हमारा प्राथमिक स्कूल  प्राथमिक से माध्यमिक स्कूल में , हो रहा हमारा गमन। प्राथमिक से माध्यमिक स्कूल में , हो रहा हमारा गमन। चरित्र-निर्माण प्राथमिकता हमारी , हम सब शिक्षा के हैं श्रमण।   बचपन की दहलीज छोड़कर , जा रहे हैं किशोर के आंगन। हम सबके लिए है बेशक , अधिक चुनौती भरा ये प्रांगण।   एक तरफ बहुत हर्ष हो रहा , प्रस्थान कर रहे हम ऊंचे वर्ग में। कुछ ऐसा हम भी रच जाएं , लिखे जाएं वे भी ‘सर्ग’ में।   बाल वाटिका से वर्ग पंचम तक। अति प्यारा बचपन का ये पल। मस्ती भ...

Short-Poem for children in Hindi - मेरी माँ

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Short-Poem for children in Hindi - "मेरी माँ"   बाल मन के भावों को रेखांकित करती कविता है|  इस  लघु कविता में बच्चे के माध्यम से यह बताया गया है कि बच्चे का प्रथम गुरु उसकी माता होती हैं| वैसे भी माता की महिमा अनंत है| शिशु के लिए उसकी माता ही पूरी दुनिया होती है|       लघु कविता - मेरी माँ Image from Pixabay माँ के ज्ञान की बारिश में,   मैं रोज़ खूब भीगता हूँ | माँ के ज्ञान की बारिश में,   मैं रोज़ खूब भीगता हूँ | थोड़ा ही सही पर उनसे मैं,   रोज़ कुछ सीखता हूँ | रोज़ कुछ सीखता हूँ।|   Also read another poem  – “माँ तू कहाँ ? ” करता नहीं कोई शोरगुल,   न हीं मैं चीखता हूँ | करता नहीं कोई शोरगुल,   न हीं मैं चीखता हूँ | थोड़ा ही सही पर उनसे मैं, रोज़ कुछ सीखता हूँ | रोज़ कुछ सीखता हूँ।|         -   कृष्ण   कुमार   कैवल्य|

Mind-blowing poem in Hindi - "टिस"

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  Mind-blowing Poem in Hindi - " टिस" आज के सच को बयां करती कविता है| यह विकृत होती युवा पीढ़ी को सच का आईना दिखाते हुए उन्हें सही मार्ग पर आने का आह्वान करती है | भले ही यह कविता छोटी है ; किन्तु इसके शब्द काफ़ी गहरे हैं|  गंभीरता से पढ़ने पर यह दिल में एक टिस (दर्द ) पैदा करती है| कविता कुछ इस प्रकार है- टिस इत्र , परफ्यूम , पाउडर , क्रीम , देह की नुमाइश तड़क-भड़क। इत्र , परफ्यूम , पाउडर , क्रीम , देह की नुमाइश तड़क-भड़क। इतराना बलखाना , दिखाना , कपड़े जाएं इरादतन सरक। Image by crom3am from Pixabay     ये घटिया , छिछला , ओछा और गंदा , आम चलन बन गया है आज। अभिभावक की परवाह कहां ? ये त्याग दिए सारे   हैं लाज। टकराने को होते हैं आतुर , बिते दिनों की बात मर्यादा। हर बात में क्रोध व आग जुबां पे, बदजुबानी बढ़ गई है ज़्यादा। Read another mind blowing poem - "युवा किधर" ये बात नहीं है विशेष वर्ग की , बहुसंख्य युवा इसकी चपेट में। हैं बच्चे , किशोर जो अनगढ़ मिट्टी से , वे भी आ रहे उनकी लपेट में। Imadge by  eagletonc   from Pixabay...

Short Poem on Pollution in Hindi - " प्रदूषण"

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 Short Poem on Pollution in Hindi - "प्रदूषण" एक जीवंत कविता है| इसके शब्दों को हम भौतिक रूप में प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं व महसूस भी कर सकते हैं|  प्रदूषण के कारण हमारी धरती अपने अंत की बढ़ रही है| अब भी हम अपनी हरी-भरी धरती को बचा लें| तभी हमारा अस्तित्व बचेगा| प्रस्तुत लघु कविता "प्रदूषण" ख़ास कर दिल्ली के वातावरण को लक्ष्य करके लिखी गयी है| लघु कविता  – प्रदूषण अनियोजित विकास के पैमाने पर , सुख-सुविधाओं से भरपूर शहर। अनियोजित विकास के पैमाने पर , सुख-सुविधाओं से भरपूर शहर। इसलिए देती कुदरत है सज़ा , बरसाती है और कहर , बरसाती है और कहर। इंसान के जुल्म के कारण, लगती है यमुना एक नहर| पानी इसका था अति स्वच्छ, पर बन गयी अब ये है ज़हर|  हाँ  बन गयी अब ये है ज़हर|  -कृष्ण कुमार कैवल्य|   Also read other inspirational poem - " लौट चलें कुदरत की ओर"    * प्रतिवर्ष ख़ासकर दिसंबर - जनवरी के बीच  दिल्ली  गैस के चेंबर में तब्दील हो जाती है।  अतः  सतत् विकास अपनाएं | प्रदूषण   से   मुक्ति   पा...