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Realistic-Sensitive Poem – “अग्निवीर”

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Realistic-Sensitive Poem  – “अग्निवीर”   आँखें खोल देने वाली एक संवेदनशील कविता है|  भारतीय सेना में भर्ती के लिए बनाई गई अग्निपथ योजना के अंतर्गत अग्निवीरों को बहाल करने की व्यवस्था है| कविता इन्हीं अग्निवीरों को केन्द्रित करके लिखी गयी है | यह कविता भारतीय सेना एवं भारत देश को समर्पित है|   Image by Yogendra Singh from pexels.com अग्निवीर   न लें हल्के में सेना को, इनके होने से हम | न लें हल्के में सेना को, इनके होने से हम | “ अग्निवीर ” के आने से , हुआ मनोबल कम |   कहने को ये अग्निवीर , पर बुझ रही ये आग | सेना में शामिल होने का , घट रहा अनुराग |   चार साल की सेवा ही क्या , पल भर में जाएगी बीत | हिन्द की बात करने वालों की , होती नहीं ये रीत|   फ़ौजी कहलाने का भाव नहीं , लगते हैं संविदाकर्मी | देशभक्ति का भाव घट रहा , नहीं रहा वर्दी में गर्मी | Read Other Sensitive Poem - "हाशिए का आदमी" यह संकेत बड़े ख़तरे का , ले सकते लाभ चरमपंथी | इनके दिमाग में भर सकते हैं , अतिवादी बड़ी विषग्रंथि |   राष्ट्रवाद को ले चलने वाले

Inspirational-Poem In Hindi "लौट-चलें कुदरत की ओर"

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  Inspirational-Poem In Hindi - लौट चलें कुदरत की ओर"  इंसान और प्रकृति के बीच के गहरे अंतर-संबंध को दर्शाता है।     दोस्तों, हम कितना भी अप्राकृतिक होना चाहें , प्रकृति हमें ऐसा नहीं होने देगी। क्योंकि प्रकृति के अस्तित्व से ही हमारा अस्तित्व है। कविता कुछ इस प्रकार है-     लौट चलें कुदरत की ओर   Image by b13923790 from Pixabay कहने को तो वानर जात , मचाते समूह में ये उत्पात | कहने को तो वानर जात , मचाते समूह में ये उत्पात | हैं करते स्पर्धा मानव से , हम डाल-डाल ये पात-पात | हम डाल-डाल ये पात-पात |   राज सेहत का इनसे लें हम , पड़ते नहीं कभी ये बीमार | पूर्ण आश्रित कुदरत पे हों गर , रोगों से हम न होंगे दो-चार | Sensitive Poem on Earth in Hindi - "आओ धरा का नाश करें|"  अप्राकृतिक जितना हम होंगे , करेंगे जितना कृत्रिम उपभोग | मन रहेगा हमारा अस्थिर , होगा कैसे काया निरोग?   लौट चलें कुदरत की ओर अब , आई.टी. जेनरेशन व इनके पिता | वक्त फिसल रहा है हाथ से , बेवक्त सज रही सबकी चिता| वक्त फिसल रहा है हाथ से , बेवक्त सज रही

Sensitive-Emotional Poem on Poor in Hindi

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Sensitive-Emotional Poem on Poor in Hindi - " हाशिए का आदमी" दिल को छू लेने वाली कविता है| जो ज़िंदगी का कड़वा सच बयां करती है|   महान क्रांतिकारी भगत सिंह  ने ठीक ही कहा था कि "दुनिया में सबसे बड़ा पाप ग़रीबी है|" ये इंसान से कुछ भी करा सकती है|   ग़रीब आदमी की ज़िंदगी रोटी से शुरू होती है और रोटी पर ही ख़त्म हो जाती है| पेट से ऊपर मस्तिष्क के बारे में वे सोचना चाहें भी तो सोच नहीं पाते|  कविता कुछ इस प्रकार है - हाशिए का आदमी राजा  केवल  एक दिन  के हम , बाकी दिन बस आम| तोड़ते हमें हैं ख़ास लोग , न चेहरा है न नाम |   मिलती दुत्कार है पशुओं जैसी , हैं करते निरंतर काम | मर्यादा का रखते ध्यान , पर फिर भी हम बदनाम |  Must read another sensitive Poem - "बुरा इंसान" काम हमारी है पूँजी और काम  रहीम और राम | काम से बड़ा कुछ भी नहीं , बस काम ही चारों धाम |   अभिजन के लिए देशी घी , हमारे लिए है पाम | उनके लिए खुलता है ट्रैफिक व हमारे लिए है जाम |   सेठों को नींद आती नहीं , लेते लंबा आराम | हम जैसे रख देते जहाँ सर , हो जाता विश्राम| https://simple.wikipedia.org/wiki/File:Asha

Sensitive-Poem on Bad-man in Hindi- "बुरा इंसान"

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 Sensitive-Poem on Bad-man in Hindi- "बुरा इंसान" दुष्ट लोगों पर चोट करती कविता है| समाज में ग़लत लोगों की कोई कमी नहीं है| बुरे लोग अच्छे लोगों की अच्छाई का नाजायज फायदा उठाते हैं| जबकि ख़ुद अच्छाई का लबादा ओढ़कर रहते हैं| ऐसे लोग अपनी जमात में सच्च्चे इंसान को भी खिंचना चाहते हैं; ताकि भले लोगों की ज़िन्दगी बर्बाद हो सके|  इसलिए बुरे इंसान से सदा सतर्क व बचकर रहें| जब भी मौका मिले; ऐसे दुष्टों को उनके घर (जेल) पहुंचाने में कोई कसर न छोड़ें| जिएँ और जीने दें| Image by Мансур Тляков from Pixabay "बुरा इंसान" चाहिए ढेर सारा गोबर तो , अपने दिमाग से निकाल लो तुम। चाहिए ढेर सारा गोबर तो , अपने दिमाग से निकाल लो तुम। नहीं इसकी कमी है तुझ में , जीते जागते कंकाल हो तुम।     पर चाहते नहीं तुम इसको निकालें , सड़ाकर खूब गैस इससे बना लें। कुछ और गिरे आ सकते हों इसमें , इसके लिए उनको भी मना लें।   Read another Sensitive Poem - "युवा किधर?"  पतन की आखिरी सीमा तक जाएं , हर कुकर्म शिद्दत से निभाएं। सफेदपोश सदा ही रहकर , चरित्र बुरा दुनिया से छ