Sensitive Poem on Earth in Hindi
Sensitive Poem on Earth in Hindi - एक संवेदनशील व्यंगात्मक कविता है|
यह कविता उलटी वाणी प्रस्तुत करती है| अर्थात लिखा तो कुछ और है, पर सन्देश उसके उलट है| इस कविता के माध्यम से मैं सहिष्णुता, विश्व-शांति, सद्भाव तथा वसुधैव कुटुंबकम (Whole World is family) की अपील करता हूँ|
आओ धरा का नाश करें
आओ चलो कुछ
ख़ास करें,
अपनी धरा का
नाश करें|
बहुत जी लिए
इस गोले पर
अन्य पिंड का
आस करें|
(अपनी धरा का
नाश करें)| -2
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हजारों वर्षों से झेल रहे इसको,
कुछ हमें नया करना अब चाहिए|
देशों की वही सब सीमा,
परिवर्तन हमें अब चाहिए|
(कुछ हमें नया करना अब चाहिए)| -2
पुराने
अस्त्र-शस्त्र फेंक दें सब हम|
आज के दौर का
लय अब चाहिए|
‘आण्विक बम’ रखा क्यों
हमने,
पटक इसे प्रलय अब चाहिए|
(आज के दौर
का लय अब चाहिए)| -2
कटना-छिलना
भला है हिंसा!
‘बाढ़ रक्त का’
दिखना चाहिए|
ऐसा हो
दुनिया में मंज़र,
हर इंसान को चीखना चाहिए|
(बाढ़ रक्त का दिखना चाहिए)| -2
अब मानव है खून का प्रेमी,
कच्चा माँस
हमें भाए है|
प्रेम पिछड़े मानुष का भाव है,
हम तो आगे
निकल आए हैं|
(कच्चा माँस
हमें भाए है)| -2
अहंकार है
अपने चरम पर,
दौर चला है न
सहने का|
जितना ज्यादा
शिक्षित मानव,
उतना भाव संग
न रहने का|
(दौर चला है
न सहने का)| -2
विष वमन की पहले थी आदत,
रुझान नया बस
है प्रतिकार|
अन्दर मुख
के ‘टार ही टार हो’,
बाहर दुनिया
में ‘थार ही थार’|
(रुझान नया
बस है प्रतिकार)|- 2
अस्मिता बस कहने को बाकी,
वक्त बहुत
बचे हैं थोड़े|
नीले ग्रह को रक्तिम करके,
मंगल से खुद
को अब जोड़ें|
(वक्त बहुत
बचे हैं थोड़े)| - 2
रही बात गरीबों की तो,
जीना इनका और
मरना क्या है?
अस्तित्व
विहिन प्राणी हैं ये सब,
इनसे थोड़ा भी
डरना क्या है?
(जीना इनका
और मरना क्या है)?- 2
माँ-बाप क्या
बचे हैं हमसे?
दूजे को हम
क्या छोड़ेंगे?
हम इंसान बड़े
हैं निष्ठुर,
इस धरा को भी
तोड़ेंगे|
(दूजे को हम
क्या छोड़ेंगे)?- 2
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जननी-जन्मभूमि
दोनों समान,
पर दुर्गति
दोनों का एक है|
भाव ही अब हो
गया विषैला,
फिर नियति
कहाँ दोनों के नेक हैं|
(दुर्गति
दोनों का एक है)|- 2
इसलिए चलो
कुछ खास करें,
आओ धरा का नाश करें|
बहुत जी लिए
इस लट्टू पर,
अन्य गोले का
आस करें|
(आओ धरा का
नाश करें)|- 2
***कृष्ण कुमार कैवल्य***
Sensitive Poem on Earth in Hindi- से जुड़े शब्दार्थ/भावार्थ –
*इंगित – बताना, दर्शाना, निर्दिष्ट करना|
*व्यंग्य – ताना, शब्द की व्यंजना शक्ति द्वारा निकला
अर्थ|
*चरम – उच्चतम
स्तर, अंतिम सीमा|
*प्रखर –
प्रचंड, तेज, तीक्षण|
*मंशा- मन का
भाव, इच्छा, इरादा, अभिप्राय|
*अधम – नीच, दुष्ट|
*गूढ़ – खास गुप्त
बात, छिपा हुआ|
*मरुभूमि –
मरुस्थल|
*गोला/लट्टू/धरा – धरती, पृथ्वी के लिए प्रयुक्त शब्द|
*आण्विक – अणु
संबंधी (Nuclear)|
*मंज़र – दृश्य,
नज़ारा, दीदार|
*अहंकार –
घमंड|
*विष-वमन – ज़हर
उगलना (यहाँ शिकायत, निंदा/चुभने वाली बातें करने के अर्थ में)|
*प्रतिकार –
प्रतिरोध, विरोध, मुखालिफ़त|
*टार – धुम्रपान के कारण मुख के अन्दर बनने वाली खतरनाक चीज|
*थार ही थार -
मरुभूमि का प्रतीक|
*अस्मिता –
गौरव, आत्मसम्मान|
*नीला ग्रह – धरती, पृथ्वी के लिए प्रयुक्त|
*रक्तिम - बर्बाद,
नाश|
*मंगल – मंगल ग्रह
के लिए प्रयुक्त शब्द|
*निष्ठुर –
निर्दयी, कठोर, बेरहम. क्रूर, निर्मम|
*दूजा- अन्य, दूसरा|
*नियति –
किस्मत, भाग्य|
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Sensitive Poem on Earth in Hindi- से संबद्ध कुछ
बातें –
आज विश्वयुद्ध सी पृष्ठभूमि चारों और दिखने
लगी है| एक देश दूसरे देश को तोड़ने/नष्ट करने को आतुर हैं| ख़ुद को सही बताकर दूसरे
को बर्बाद करने व झुकाने की मंशा सर्वनाश ला रहा है|
मनुष्य अपनी करनी(कुकृत्य)
से प्राकृतिक संसाधनों का नाश करते जा रहा है| चारों ओर बढ़ती भूख, निराशा, हताशा के
बीच अहंकार का टकराव जारी है| अगर यह क्रम जारी रहा तो मानव अपनी धरती का नाश अपने
हाथों से बहुत जल्द ही कर देगा|
इसके अलावे यदि यही महत्वाकांक्षी अधम इंसान धरती का
नाश करके चन्द्रमा और मंगल पर भी मानव बस्ती बसा लें, तब भी उन्हें भी ये नष्ट कर
देंगे और खुद को भी ख़त्म कर लेंगे|
इंसान की प्रवृति में रचनात्मकता, विकासात्मकता, शांतिप्रियता
जैसे मानवीय मूल्य बहुत ज़रुरी हैं| अगर ये तत्व नहीं रहेंगे, तो मनुष्य कहीं भी चला जाए,
विनाश ही लाएगा|
इसलिए ज़रुरी यह है कि इंसान इंसान बना रहे, धरती को
सुन्दर बनाए व मानवीय मूल्यों को बरकरार रखे|
Sensitive Poem on Earth in Hindi-
इस कविता में अंधी दौड़ में जी रहे इंसान के चरित्र को रेखांकित किया गया है| जबकि
इस पद्य का स्पष्ट संदेश है – प्रेम, भाईचारा, शांति व सहिष्णुता|
महान संत कबीर दास जी ने समाज को जगाने के लिए कई
उलटी बानियाँ (उलटबांसिया) कही थी| उनके कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं –
1.
धरती उलटि अकासै जाय|
चिउंटी के मुख हस्ति समाय||
2.
बिना पवन सो पर्वत उड़े|
जीव जंतु सब वृक्षा चढ़े|| आदि|....
कबीर दास जी के उलटबासियों के अर्थ
बहुत गूढ़ एवं दिव्य हैं| उन्हें जितना समझा जाएगा, उनमें इंसान उतना ही समाता चला जाएगा|
धन्यवाद|
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