Sensitive Poem on Animal/Milk in Hindi
Sensitive Poem on Animal/Milk in Hindi -
मानव आदि काल से जानवरों को अपने साथ रखता आया है| फ़िर कालान्तर में मनुष्य दुधारू पशुओं का दूध भी पीने लगा| इस दूध की प्राप्ति के लिए उन पर धीरे-धीरे अत्याचार भी बढ़ते चले गए| फिर यही दूध इंसान को नुकसान भी पहुँचाने लगा|
हमें ज़रुरत है यह समझने की कि पशु भी जीव हैं; जिन पर दूध के लिए क्रूरता करना अमानवीय है| दूध पीना या न पीना यह व्यक्ति विशेष का निजी मामला है| यह कविता पशुओं द्वारा मनुष्य के प्रति किया गया विनम्र आह्वान है| इन बिन्दुओं के आलोक में प्रस्तुत है कविता – दूध|
दूध
गाय, भैंस, बकरी आदि
जानता इंसान कई नाम से|
जन सेवा हेतु हम तत्पर,
रखता हमें अपने काम से|
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मनुष्य तो होता बुद्धिमान है|
करता ये दुनिया पे राज है|
न्याय की बातें ख़ूब ये करता,
गिराता अथक हम पे गाज है|
निम्न स्तर पर हम को रखकर
हेय दृष्टि से हमें ये देखता|
दरकिनार करके दर्द को
अतिशय नकेल हम पे रखता|
खिलौना रूप में हमें समझता,
जैसे चाहे हमसे खेलता|
अपने स्वार्थ पूरे ये करता,
मुश्किल से ये हमें झेलता|
पैर हमारे बांधे जाते,
किया जाता मज़बूर|
मानव नहीं हम पशु हैं,
हमारा है ये कसूर|
कृत्रिम गर्भधान कराते,
होता है ये जबरन|
वे सब दूध, मवेशी पाते,
टूटता जाता ये तन|
यही बात इन पर हो लागू,
ये क्या इसको कहेंगे?
अत्याचार अगर हो ऐसा,
ये क्या तनिक सहेंगे?
थोड़ा सा ही दूध चटाकर
बछड़ों को ये अलग ला धरता|
बच्चों का हक़ ये मारकर
अपने बच्चों का पेट है भरता|
जिन बच्चों को पीना दूध था,
देता वो कुटी-सानी|
दुष्टता ख़ूब हम पे ये करता,
करता वो मनमानी|
इस तरह कमज़ोर हैं होते
हमारे बच्चे प्रारंभ से|
मानुष ये करता आया है
आदि काल आरंभ से|
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सोंचता मानव तनिक भी नहीं,
नहीं दूध ये उनके लिए|
लाभकारी होता है दूध सिर्फ़,
इंसा का दूध इंसा के लिए|
दूध ज़हरीला बनता जा रहा,
इंजेक्शन आदि को देकर|
ख़ूब सारे उत्पाद पा रहा,
हमारे इस दूध को लेकर|
कितना दूध है कितना रसायन,
पैकेट में ये पता नहीं|
वे सब ही करते हैं ये सब,
इसमें हमारी ख़ता नहीं|
जबरन दूध निकाले जाने से,
हार्मोन विषैले हैं आते|
यदि कोई रोग हमें हो,
वो भी दूध में जाते|
वात और दिल के रोग हो रहे,
दूध हमारे पीने से|
अनंत दुःख होते हैं जग में,
नहीं होश में जीने से|
आध्यात्मिक, वैज्ञानिक, नैतिक,
सोचो जिस भी रूप में|
अत्याचार क्या नहीं कर रहे,
जी रहे जाने किस कूप में|
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दूध की सारी पोषकता
प्रकृति में भरपूर|
शाक, सब्जी, फल व कंद में
ये चीजें प्रचुर|
मानो या न मानो हमारी
जिंदगी दो नहीं एक है|
दूर दृष्टि से सोंचना इसको
तुम्हारे पास विवेक है||
दूर दृष्टि से सोंचना इसको
तुम्हारे पास विवेक है||
===कृष्ण कुमार कैवल्य===
Sensitive Poem on Animal/Milk in Hindi - से जुड़े शब्दार्थ-
आदिकाल - अति प्राचीन समय|
कालांतर -
बाद के समय में|
आलोक – प्रकाश|
गाज – मुसीबत, आफ़त|
दरकिनार – एक तरफ़, अलग|
अतिशय – बहुत ज़्यादा|
मवेशी – जानवर, पशु|
ख़ता – गलती|
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‘पानी’|
Sensitive Poem on Animal/Milk in Hindi –
इस कविता के लेखन के क्रम में पशु-कल्याण एवं पशु-अधिकार से जुड़ी एक संस्था के बारे में
जिक्र करना यहाँ ज़रुरी जान पड़ता है| यह संस्था है – PETA (People for the Ethical Treatment
of Animals)| ये संस्था पशुओं के साथ नैतिक व्यवहार करने की गुजारिश करता है| साथ
ही अपने विभिन्न आंकड़ों, शोध-पत्रों व अध्ययनों से पूरे संसार में ज्ञान-प्रसार कर
लोगों और सरकारों को जागृत करता है| सन 1980 में अमेरिका के वर्जिनिया के नॉर्फोल्क
में इसकी स्थापना की गयी| ज्ञात हो कि यह विश्व का सबसे बड़ा पशु-अधिकार संगठन है| संसार
में इसके सदस्यों की संख्या लगभग 20 लाख है|
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