Sensitive-Realistic Poem on Water in Hindi/”पानी” पर कविता

Sensitive-Realistic Poem on Water in Hindi/पानी पर कविता  – मूलतः मनुष्य की अनियंत्रित महत्वाकांक्षा को चिन्हित करती कविता है, जो सतत विकास पर जाकर समाप्त होती है| मानव अपनी महत्वाकांक्षा की चादर इतनी लम्बी करता जा रहा है कि उसे धरती के अस्तित्व की भी परवाह नहीं|

वह केवल स्वयं और अपने आगे की पीढ़ी तक देख पा रहा है| “उसके आगे क्या होगा?” इसकी उसे तनिक भी परवाह नहीं| बुरा रास्ता अपनाकर भी वह विकास करना चाह रहा है| यह रास्ता वास्तव में विकास नहीं बल्कि विनाश की ओर ले जा रहा है|

सारे विकास के मूल में “जल” है, जो समाप्ति की ओर है| इंसान धरती का “सबसे बुद्धिमान प्राणी” है| आज जरूरत है कि वह इसे साबित करे, अन्यथा यह वृक्ष रुपी संसार अपनी जड़ से जल्द ही उखड़ जाएगा| संभलने की लिए अब भी कुछ वक्त बाकी है दोस्तों..|

पानी

Sensitive-Realistic Poem on Water in Hindi
Image by rony michaud from Pixabay

धरती प्यासी है चाहिए पानी,
फिर भी अधिक हो रहा दोहन|
माना विकास की अधिक ज़रुरत,
पर है ये कैसा आरोहण?


सर्वस्व न्यौछावर करते-करते,
हो गयी हैं नदियाँ पूरी अचेत|
गहरी नींद नहीं ख़त्म हुई है,
मानव नहीं हुआ है सचेत|


कुएँ-तालाब बन रहे कागज़ पर,
भ्रष्टाचार के लम्बे साए|
सस्ता खून और महँगा पानी
पानी ने क्या दिन दिखलाए?

Must Read Sensitive Poem : “नदियाँ”


वायु इतनी हो गयी है गन्दी,
ये भी तो अब बिकने लगी है|
लूट न ले पानी अब कोई,
पहरेदारी भी होने लगी है|


ज़िन्दगी बनाने के बदले में,
नष्ट इसे कर रहा है मानव|
विकास की इस “अंधी दौड़ में,
यह बिलकुल बन गया है दानव|


अनियोजित विकास का फ़ल,
भोग चुका है उत्तराखंड|
गलत कदम यदि नहीं रुके तो,
होंगे विकास खंड-खंड|


भारत देश है लोक-कल्याणकारी,
बहुत शासन पर ज़िम्मेदारी|
प्रयास सरकार के नहीं हैं सब कुछ,
परमावश्यक लोक-भागीदारी|

Read  other sensitive Poem :  “गंगा”


हो रहा कम आँखों का पानी,
कर रहा आदमी पानी-पानी|
पानी पिला रखा इंसान है,
सृष्टि की हो रही है हानि|


मीठा पानी कहीं है ज्यादा,
और कहीं है तेल|
आँखों में दे-दे कर आँसू,
रच रहे देश कई खेल|


अब सुन ले जग के इंसान!
नहीं अभी तू कुछ भी भोगा|
तृतीय विश्व-युद्ध निश्चित ही,
पानी के मुद्दे पर होगा|

 

बहुत ज्ञानी और तुम हो विवेकी,
अब भी तुम कुछ शर्म करो|
पूरी धरा अपना ही है घर,
इसके लिए कुछ कर्म करो|

Sensitive-Realistic Poem on Water in Hindi

Image by Mystic Art Design from Pixabay


अगली पीढ़ी के लिए भी सोंचो,
एक तरफ़ा विकास नहीं अच्छा|
धरती रहे ये जीने लायक,
सतत विकास ही सबसे सच्चा|
सतत विकास ही सबसे सच्चा|

***कृष्ण कुमार कैवल्य***

 

Sensitive-Realistic Poem on Water in Hindi/पानी पर कविता से संबंधित शब्दार्थ/भावार्थ –  

 

दोहन करना – उपयोग करना, काम लेना|
आरोहण – सवारी, चढ़ाई(ascent)| (यहाँ आगे बढ़ने के अर्थ में प्रयुक्त)|
सर्वस्व – सब कुछ|
अचेत –  बेहोश (यहाँ संकटग्रस्त’ होने के अर्थ में प्रयोग)|
गहरी नींद का ख़त्म नहीं होना – इसका भावार्थ है – इंसान अपनी लापरवाहियों, गलतियों को अंतर्मन से नहीं देख पा रहा है| वो सोई हुई अवस्था में अब भी है| अर्थात चेतना का संचार उसमें अभी नहीं हुआ है|
दानव – राक्षस, बुराई का प्रतीक|
उत्तराखंड – भारतीय राज्य(प्रान्त) उत्तराखंड|
लोक-भागीदारी – जनता की भागीदारी|
आँखों का पानी कम होना – शर्म/लज्जा ख़त्म होता जाना, इंसानियत का लोप/कम होता जाना|
पानी पिलाना – अस्थिर करना, परेशानी पैदा करना, तबाही मचाना|
खेल रचना –  षड्यंत्र करना|
भोगना –  दुःख/कष्ट पाना|
पूरी धरा अपना ही है घर – सारी धरती परिवार के समान है| यानी “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना| (The whole world is a family).
अगली पीढी – आगे का वंश (Next Generation).
सतत-विकास – धारणीय/टिकाऊ विकास(Sustainable Development).

नोट – दोस्तों, अगर आप अपनी कोई साहित्यिक रचना ( कविता, गीत, कहानी, नाटक, संस्मरण, आदि) मेरे ब्लॉग पर publish कराना चाहते हैं तो अपना नाम, अपनी रचना  एवं अपने photo के साथ मेरे ब्लॉग पर Email कर सकते हैं|

यदि आपका पोस्ट (रचना)  मेरे ब्लॉग/वेबसाइट की प्रकृति के अनुरूप रहेगा तो आपके पोस्ट को ज़रूर प्रकाशित किया जाएगा|रचना अवश्य ही मौलिक (original) होनी चाहिए|धन्यवाद|

टिप्पणियाँ