Sensitive Poem on 'Ganga' in Hindi

Sensitive Poem on ‘Ganga’ in Hindi – जैसा कि हम जानते हैं कि गंगा हमारे देश की सबसे बड़ी नदी है| यह नदी गंगोत्री से निकलकर बंगाल की खाड़ी तक का सफ़र पूरी करती है| इस पूरी यात्रा में गंगा पर इतने अत्याचार किये जाते हैं कि जिसकी कोई सीमा ही नहीं है| गंगा के प्रवाह में जगह-जगह रुकावटें पैदा की गयी हैं| इसके किनारे-किनारे कई अनियोजित शहर बसे हैं| इन शहरों से बहुत अधिक कचरे की निकासी होती है, जिसे गंगा में प्रवाहित कर दी जाती है|


गंगा तट पर अनेकानेक छोटे-बड़े उद्योग हैं| ये कल-कारखाने न सिर्फ अपने यहाँ के कचरे इसमें प्रवाहित करते हैं, बल्कि खतरनाक तथा विषैले रसायनों को भी उसी में समाहित करते जाते हैं| इनके मालिकों द्वारा ये कार्य हर हथकंडा अपनाते हुए शुरू से किया जाता रहा है|


इन कथित बुद्धिजीवियों को यह भली-भाँति पता है कि उनके ऐसे कृत्य से गंगा का अस्तित्व हीं तेजी से समाप्त होता जा रहा है| और ऐसा होते रहने से भयानक सामाजिक-आर्थिक दुर्दशा हम सब के सामने प्रकट भी हो रहा है| पर चूँकि ऐसा करने से उनके अपने हित पूरे हो रहे हैं| अतः वे सारी बातों को धता बता कर अपने विकास की अंधी व गंदी दौड़ में पागलों की तरह बढ़ते जा रहे हैं|


ऐसी गतिविधियों से निपटने के सरकारी प्रयास वर्षों से जारी हैं, जो नाकाफ़ी हैं| शायद भविष्य में ये प्रयास सार्थक हों| ज़रूरत है जन-जागरूकता की एवं और अधिक सार्थक प्रयास की| साथ ही ‘सभी नदियों की स्वच्छता’ पर ध्यान देने की| ऐसी ही बातों को सामने रखने का एक छोटा सा प्रयास भर है यह कविता (Sensitive Poem on ‘Ganga’ in Hindi) – ‘गंगा’|


कविता –  गंगा

भगीरथ के अथक प्रयास से,
अवतरित हुई थीं गंगा|
अविरल, निर्मल, कलकल करती,
बहती थीं अमृत संगा|


Sensitive Poem on 'Ganga' in Hindi
 Image by Ria Sopala from Pixabay


लोगों का मैला ढोते-ढोते,
हो गयीं हैं अब ये मैली|
पवित्रता के नाम पर उनमें,
गंदगी अपार है फ़ैली|


गंगा को हम माँ हैं मानते,
तब भी गन्दा सब करते हैं|
उस जल का उपयोग हैं करते,
तिल-तिल कर फिर मरते हैं|


पर्व-त्यौहार का अवसर हो,
या हो जन्म-मरण का|
अति अपशिष्ट विसर्जित करते हम,
कृत्य ये मूल्य-क्षरण का|

Must Read Other Sensitive-Realistic Poem : सफ़ाईवाला


इसलिए,
धातु की मूरत हम पूजें,
मूर्ति-विसर्जन को रोकें|
रोज़गार के यहाँ कई अवसर,
रहें जब गंगा का होके|


निश्चित बहाव गंगा का अपना,
इसका जीन-पुल है अपना|
छेड़छाड़ न हो इससे अब,
हो हम सब का सपना|


इहलोक-परलोक के नाम पर,
न आडम्बर कर नर तू,
लोगों को पुनः आज जगाकर,
दुःख गंगा का हर तू|

Sensitive Poem on 'Ganga' in Hindi

 Image by oreotikii from Pixabay


युगों से गंगा ने लोगों का,
किया अब तक उद्धार|
अब तुम पर ये कर्ज़ है भारत,
कर उनका पुनरुद्धार|


हम सबकी अति हैं प्यारी,
अपनी अमृतमयी गंगा|
ये भारत की अमिट शान हैं,
जैसे विजयी तिरंगा|
ये भारत की अमिट शान हैं,
जैसे विजयी तिरंगा|

===कृष्ण कुमार कैवल्य===


कविता – ‘गंगा’ (Sensitive Poem on ‘Ganga’ in Hindi) से जुड़े शब्दार्थ/भावार्थ –

अंधी व गंदी दौड़ – यहाँ इससे तात्पर्य है भला-बुरा का विचार किये बिना कमाने की होड़ में लगना तथा ज़हरीले रसायनों एवं कचरों से गंगाजल को दुषित एवं विषैला बनाना|
(इसी पानी का उपयोग पेयजल के रुप में इस क्षेत्र के इंसान तथा अनेक पशु-पक्षी करते हैं| कृषि-बागवानी जैसे कार्यों में गंगाजल का उपयोग गंगा तट के सारे कृषक भी करते हैं| नतीजतन ये विषाक्त रसायन पीने के पानी, दूध, फ़ल, खाद्यान्न आदि के रूप में मानव व पशु-पक्षियों के शरीर में जाकर अनेक रोगों को जन्म दे रहे हैं)|
अमृत संगा – गंगाजल के साथ अनेक उपयोगी जड़ी-बुटियां प्रवाहित होती हैं, जो अमृत के समान हैं| (किन्तु अत्यधिक जल प्रदूषण के कारण इनका महत्व गौण सा हो गया है)|
भगीरथ – एक परम तपस्वी राजा भगीरथ|
मूल्य क्षरण –  मानवीय गुणों और अच्छाइयों का पतन|
जीन पुल – हर नदी की अपनी एक आतंरिक संरचना व गुण होता है| इन्हीं गुणों के कारण सभी नदियों की अपनी-अपनी विशिष्टताएँ होती हैं|
इहलोक – संसार, धरती|
परलोक – एक अनजान दूसरी दुनिया|
आडम्बर – दिखावा|
भारत – यहाँ भारतवासियों के लिए प्रयुक्त|
पुनरुद्धार – फ़िर से नवजीवन देना|
विजयी तिरंगा – हमारे देश का अजेय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा|


टिप्पणियाँ