Heart-Touching Revolutionary-Poem on Poverty in Hindi
Heart-Touching Revolutionary-Poem on Poverty in Hindi – एक संवेदनशील कविता है| ग़रीबी इंसान से बुरा से बुरा काम करा देती है| यह अनेक पापों की जननी है| इस कविता में ग़रीबी तथा ग़रीब व्यक्ति के विभिन्न आयामों को स्पर्श करने की कोशिश की गयी है| मैंने इस कविता में समाज के विद्रूप चेहरे पर से आवरण हटाकर वस्तुस्थिति से सभी को परिचित कराने का भरसक प्रयास किया है|
ग़रीब
दिखता नहीं है गंदा पानी,
हद से गुज़र जाए जब प्यास|
हाल क्या जाने पाप पुण्य का?
जिसका सब हो जाए नाश|
हाल क्या जाने पाप पुण्य का|
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भूख से कोई तड़प रहा हो
विधि की बात वो क्या जाने?
रखे रह जाते नियम हैं,
ज्ञान शास्त्र का क्या माने?
रखे रह जाते नियम हैं|
जिस पर हुआ हो अत्याचार,
संयम वो कहाँ से लाए?
भरपाई नहीं है इसकी,
बिछड़े अपने वो कहाँ से पाए?
भरपाई नहीं है इसकी|
इज्जत सब कुछ होता ग़रीब का,
इसके लिए वे मरते हैं|
‘हर कीमत पर’ सोंच नहीं उनकी,
संभव प्रयास वे करते हैं|
‘हर कीमत पर’ सोंच नहीं उनकी|
सारे नियम ग़रीब के लिए,
नहीं मिलती सज़ा अमीर को|
एक ख़ुशी के लिए तरसता,
सिलता रहता वो चीर को|
एक ख़ुशी के लिए तरसता|
अपवाद सम्मुख हो सकते हैं,
अभिजन कोई पाया हो सज़ा|
इस्तेमाल कर अपने रसूख का,
दुर्जन लेते मज़ा ही मज़ा|
इस्तेमाल कर अपने रसूख का|
Image by Edward Lich from Pixabay
आज पेट भरा भी नहीं,
कल की चिंता होती है|
दर्द नहीं सुनता है कोई,
आँखों से बरसता मोती है|
दर्द नहीं सुनता है कोई|
पूरा जीवन दुःख सहते-सहते,
नहीं चेतना रह जाती है|
तेल नहीं रहता दीपक में,
बाती कहाँ जल पाती है?
तेल नहीं रहता दीपक में|
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विद्रोह नहीं कर सकते हैं,
मूरत बने ये रहते हैं|
चेहरे की मायूसी इनकी,
सारी सच्चाई कहते हैं|
चेहरे की मायूसी इनकी|
बदलाव आवश्यक है समाज में,
आज बनें उनकी आवाज़|
इंक़लाब हो अगर ज़रूरी,
कर दें हम इसका आगाज़|
कर दें हम इसका आगाज़|
===कृष्ण कुमार कैवल्य===
Heart-Touching Revolutionary-Poem on Poverty in Hindi के माध्यम से मेरी समाज से एक विनम्र विनती है –
हमें यह समझना ज़रूरी है कि ‘मौन’ की सीमा क्या है और ‘मुखर’ होने का समय कब आता है? दोनों मामलों में एक जैसा रवैया रखना अनुचित है| साथ ही निष्क्रियता की स्थिति विनाश को लाती है| सिर्फ़ अपने लिए तो जानवर भी जी लेते हैं, परन्तु हमें इंसानियत का परिचय देना ज़रूरी है| संवेदनहीन होकर जीने से अच्छा है मानवीय मूल्यों की रक्षा में ख़ुद को यज्ञ की बलि-बेदी पर समर्पित कर देना| साहित्य का भी काम है – समाज में जागृति लाना| धन्यवाद|
Heart-Touching Revolutionary-Poem on Poverty in Hindi – इस कविता को आप तक प्रस्तुत करते हुए मुझे कुछ महापुरुषों की “गरीबी” पर महत्वपूर्ण टिप्पणियों को यहाँ देना प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है|
Some important quotes –
- “यदि कोई एक व्यक्ति भी ऐसा रह गया जिसे किसी भी रूप में अछूत कहा जाए तो भारत को अपना सर शर्म से झुकाना पड़ेगा।“ –लाल बहादुर शास्त्री|
- “मेरी एक ही इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक हो और इस देश में कोई भूखा ना हो, अन्न के लिए आँसू बहता हुआ” – सरदार वल्लभ भाई पटेल|
- “क्या तुम्हें पता है कि दुनिया में सबसे बड़ा पाप ग़रीब होना है| ग़रीबी एक अभिशाप है| यह एक सज़ा है” – सरदार भगत सिंह|
Heart-Touching Revolutionary–Poem on Poverty in Hindi से जुड़े शब्दार्थ/भावार्थ –
आयाम – विस्तार, अधिकतम सीमा|
आवरण – परदा(cover)
विद्रूप – बिगड़ा हुआ रुप, कुरूप, भद्दा, बदसूरत|
मौन – ख़ामोश, चुप|
मुखर – वाचाल, वाक्पटु|
जागृति – जागरण|
विधि – क़ानून|
शास्त्र – अनुशासन या उपदेश करना, विज्ञान|
(यहाँ शास्त्र से तात्पर्य है – 1. जन-सामान्य के भले के लिए विधि-विधान बतलाने वाले धार्मिक-ग्रन्थ|
2. ऐसी धार्मिक पुस्तक जिसमें आचार, विचार, नीति आदि के बारे में बतलाया गया हो)|
हर कीमत पर – किसी चीज़ को पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार|
सम्मुख – सामने|
चीर – कपडा, वस्त्र|
अभिजन – धनाड्य वर्ग, अमीर वर्ग, अभिजात वर्ग, संभ्रांत वर्ग|
अपवाद – सामान्य धारणा या आकलन की जगह नया परिणाम, अत्यंत विरल|
रसूख – प्रभाव, पहुँच|
चेतना – ज्ञानमूलक मनोवृत्ति (consciousness)|
मूरत – मूर्ति|
मायूसी – उदासी, निराशा|
ग़रीब वर्ग की आवाज़ बनना (voice of poor people) – ग़रीब तबके के हक़ के लिए हर संभव (तन, मन व धन से) प्रयास करना|
इंक़लाब – क्रांति|
आगाज़ – शुरुआत, प्रारम्भ, आरम्भ, शुरू|
{तेल नहीं रहता दीपक में,
बाती कहाँ जल पाती है?} इस कथन का भावार्थ है – ग़रीब का जीवन उस सूखे पत्ते की तरह होता है, जिसे उचित पोषण (nutrition) कभी नहीं मिलता और अपने वृक्ष से वह जल्द ही गिरकर मृत हो जाता है| यहाँ वृक्ष समाज का तथा पत्ता उस वृक्ष रूपी समाज में रहने वाले ग़रीब का प्रतीक है|
दूसरे शब्दों में, ग़रीब/ग़रीब का परिवार शारीरिक, मानसिक, आर्थिक रूप से उसी प्रकार समाप्ति की ओर उन्मुख/अग्रसर हो जाता है, जिस प्रकार तेल बिना जलती बाती|
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