Heart-Touching Realistic Poem in Hindi – “प्राइवेट नौकरी”
Heart-Touching Realistic Poem in Hindi – “प्राइवेट नौकरी” आज की वास्तविकता को दर्शाती रचना है| इसमें आम आदमी की पीड़ा को व्यक्त किया गया है| प्राइवेट नौकरियों में कर्मचारियों व कई अधिकारियों की कार्य-स्थिति सामान्यतः एक जैसी होती है| उनके जीवन की विविध सच्चाइयों को बयां करती है ये कविता –
प्राइवेट नौकरी
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पसीना चाहे कितने ही बहाओ,
एड़ी-चोटी एक कर जाओ|
आका कभी खुश होता नहीं,
टारगेट पूरा होता नहीं|
ये कोई और नहीं,
ढूंढो नहीं और कहीं|
“प्राइवेट” काम की बात है,
मज़बूरी का साथ है|
सुरसा ने जब मुख बढ़ाया,
हनुमत ने भी देह बढ़ाया|
छोटे होकर अंत में निकले|
सुरसा के मुंह से वे निकले|
सुरसा का मुख असीमित है,
जी-भर काम भी सीमित है|
जितना खून है चूस लो,
आखिरी बूंद भी चूस लो|
यहाँ सदा नाखुश प्रबंधन,
बड़ा कठोर होता है बंधन|
चलते रहते हैं खूब मशीन,
इंसान बना बेबस मशीन|
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अगर बस चले तो न दें,
किसी माह का वेतन भी न दें|
रखें चौबीस घंटे पास,
मानो सेठों के हम हों दास|
ऐसा नहीं कि सभी ऐसे हैं,
पर अधिकांश निश्चित ऐसे हैं|
पहुँचती नहीं किसी की आवाज़,
बंद रहती यहाँ दिल की आवाज़|
घर में चूल्हा मुश्किल से जले,
ऊपर से यदि “दिलजले”|
करेला-नीम लाता है काल,
कर देता उनको हलाल|
आधी-अधूरी ज़िंदगी जीते-जीते,
ज़हर ग़म का रोज़ पीते-पीते|
समझ न आता जाएं कहाँ?
अमन चैन अब पाएं कहाँ?
कई निकलते सुबह ही घर से,
देर रात आते वे मर के|
सुबह रोज़ पूछती ये पम्मी,
पापा कहाँ रहते हैं मम्मी?
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क्यों हम आते नहीं उन्हें याद?
संडे को क्यों होता है विवाद?
कइयों को नहीं कमी पैसों की,
दुर्दशा है क्यों हम जैसों की?
श्रम-अधिनियम ख़ूब बने हैं,
कष्ट के बादल भी ख़ूब घने हैं|
होती इनकी ऐसी की तैसी,
ज़िन्दगी बनती गुलामों जैसी|
कुबेरों से है ये आग्रह,
न रखें उनसे दुराग्रह|
जिन पर टिका है आपका कल,
सच में हैं वे आपके बल|
जब आप औकात पे आएंगे,
कम्पनी से उनको भगाएंगे|
वे औकात पे आएंगे,
दुनिया से ले जाएंगे|
निजी क्षेत्र का है ये ज़माना,
सरकार का बहुत सीमित है खज़ाना|
भले ही ये दुर्भाग्य है,
पर बना यही अब भाग्य है|
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सरकार सब कुछ कर सकती नहीं,
रोज़गार सबको दे सकती नहीं|
पर नियामक कई बना सकती है,
अंकुश सभी पर रख सकती है|
प्राइवेट नौकरियां खराब नहीं हैं,
दिल के अच्छे कई जनाब नहीं हैं|
होता रहे यदि उचित संवाद,
नहीं होगा तब वाद-प्रतिवाद|
खून उनका नहीं है पानी,
उनके मेहनत की नहीं कोई सानी|
दुःख के घाव को सिने दो,
‘जीओ और जीने दो|’
‘जीओ और जीने दो|’
—कृष्ण कुमार कैवल्य---
Heart-Touching Realistic Poem in Hindi – “प्राइवेट नौकरी” से जुड़े शब्दार्थ/भावार्थ –
आका – मालिक, शीर्ष प्रबंधक
सुरसा – रामायण में वर्णित एक राक्षसी (यहाँ प्राइवेट प्रबंधन द्वारा दिए गए काम के लिए प्रयुक्त)|
हनुमत – हनुमान जी
हलाल – समाप्त/बर्बाद/ख़त्म कर देना
श्रम-अधिनियम – श्रम-कानून
कुबेर – सेठों, कंपनी आदि के मालिकों के लिए प्रयुक्त
दुराग्रह – जलन, ईर्ष्या
नियामक – (सरकार द्वारा बनाये जाने वाले) स्वतंत्र नियामकीय आयोग, जो विभिन्न संस्थाओं पर नियंत्रण रखती हैं|
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