Motivational-Inspirational Poem on Mahabharat in Hindi
Motivational-Inspirational Poem on Mahabharat in Hindi/कर्ण-इंद्र प्रसंग – पूरी तरह महाभारत से प्रेरित कविता है| इस कविता के माध्यम से ‘कर्ण’ के त्याग, समर्पण, महादान, प्रतिबद्ध-भाव आदि मानवीय-मूल्यों को रेखांकित करने की एक छोटी से कोशिश की गयी है|
प्रस्तुत कविता को आप तक रखते हुए मैं यह कहना चाहता हूँ कि मुझे बचन से महाभारत, गीता एवं रामायण का “आध्यात्मिक ज्ञान” मेरे पिता द्वारा नियमित रूप से 2018 तक मिलता रहा| ये मेरे लिए सौभाग्य की बात रही|
उनकी प्रेरणा से मैं सदा इन महान ग्रंथों को समझने की नित्य कोशिश करता रहता हूँ| इन एवं इन जैसे ग्रंथों में अनंत ज्ञान है| इन्हें सम्पूर्णता से समझने के लिए पूरा एक जन्म भी नाकाफ़ी होगा|
“कर्ण-इंद्र प्रसंग” कविता कुछ लम्बी है| किन्तु यह आवश्यक भी है| आप इसे पढ़ने के बाद स्वतः ही इसकी ज़रूरत महसूस करेंगे| धन्यवाद|
कर्ण-इंद्र प्रसंग
महावीर करण द्वापर में,
परंतप से था श्रेष्ठ|
जन्म की दृष्टि से भी वो था,
सभी पांडवों से ज्येष्ठ|
भीष्म थे जब कुरुभूमि में,
प्रवेश कर्ण का था तब शेष|
अर्जुन को नहीं आभास हुआ था,
खतरा किसी से अब तक विशेष|
पहले कर्ण दुःखी रहता था,
सोंचता युद्ध में होता मैं काश|
दुर्योधन के पास मैं रहता,
करता महाबाहो का नाश|
धराशायी जब भीष्म हुए,
कर्ण का आना हुआ सुनिश्चित|
भयभीत बहुत ही इंद्र हुए,
कृष्ण भी हुए अति ही चिंतित|
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अब करण विशाल आकाश था,
पार्थ के लिए था काल|
इंद्र ने युक्ति अपनी लगाई,
खेली एक नयी चाल|
सूर्य-पुत्र है बहुत ही दानी,
देता है वह नित दिन दान|
कवच-कुंडल अगर मिल जाए,
होगा उसके लिए विषपान|
पिता सूर्य ने आगाह किया,
इंद्र छलने कल आएंगे|
याचक ब्राह्मण बन कर तुमसे,
कुंडल-कवच ले जाएंगे|
मत देना तुम इन चीजों को,
पिता ये तुमसे कहता है|
अपने लिए यहाँ सोंचने वाला,
धरा पे सुख से रहता है|
ऐसे दान का क्या है मतलब?
बर्बादी ये लाएगी|
सब कुछ यहीं पर रह जाएगा,
जान ही चली जाएगी|
(अब कर्ण अपने पिता सूर्य से कहता है)-
कर नहीं सकता ऐसा कभी मैं,
लौट कैसे कोई जाएगा?
कवच-कुंडल तो चीज़ ही क्या,
जान भी करण दे जाएगा|
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कोरे वचन का अर्थ ही क्या?
ये मुझको कभी नहीं भाएगा|
घुटन भरा जीवन ये होगा,
रश्मिरथी मर जाएगा|
वेश बदल कर अगले दिन,
याचक बन अब इंद्र थे आए|
गौ, धन कीमती चीज़ नहीं मांगी,
कर्ण का जीवन मांगने आए|
कहा चाहिए कवच व कुंडल,
दे सको तो दे दो दान|
अगर क्षमता नहीं तुम्हारी,
मैं रख लूंगा तेरा मान|
कर्ण जान गया था अब तक,
ब्राह्मण को इनका क्या काम?
इंद्र करने यहाँ आए हैं,
उसके जीवन की ही शाम|
कहा राधेय ने देवराज से,
ये ब्राह्मण-क्षमता से ज़्यादा|
माँग रहे ये उसके लिए,
जिसकी शक्ति मुझसे है आधा|
इन्द्रदेव मैं राधेय हूँ,
करता पूरा जो कुछ मैं कहता|
मन-वांछित कर रहा हूँ पूरी,
भला खाली कैसे कोई जा सकता?
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सर पिता का होगा ऊँचा,
मर भी गया अगर मैं|
छोड़ नहीं सकता अपना करम मैं,
दान-धरम का डगर मैं|
इन बातों को कहते हुए,
असह्य दर्द को सहते हुए|
दे दिया अपना कवच व कुंडल,
बहुत ज़्यादा तड़पते हुए|
विस्मृत हो सब देख रहे थे,
सोंच रहे थे छली पुरंदर|
कौन है यहाँ कर्ण के जैसा?
क्या क्षमता ऐसी किसी के अन्दर?
कर्ण ने कहा छलिये से,
कहें ये कैसा न्याय है?
अपने पुत्र की रक्षा हेतु,
करना ज़रूरी अन्याय है?
मैं भी तो हूँ सूर्य-पुत्र,
नहीं किया उन्होंने अन्याय है|
सबको बराबर देना जानते,
नहीं लगती किसी की हाय है|
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नत-मस्तक सृष्टि है रहती,
महिमा उनकी अपार है|
सबके लिए है प्रेम की दृष्टि,
प्रेम जगत का सार है|
शतक्रतु हुए बड़े ही लज्जीत,
उसके ओज को किया प्रणाम|
कहा करण हर युग में दुनिया,
लेती रहेगी तेरा नाम|
मांगो मुझसे तुम कोई वर,
अंगराज दूंगा तत्काल|
तुम जैसा दानी नहीं कोई,
साक्षी रहेगा वर्तमान ये काल|
हाथ जोड़ तब कहा करण ने,
दान का करूं कैसे अपमान?
देकर कुछ जो माँग लिया तो,
कहाँ रहेगा उसका मान?
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वृत्रहान ने कहा कर्ण से,
दे रहा एक अमोघ मैं खास|
प्रयोग इसका होगा जिस पर भी,
होगा उसका निश्चित ही नाश|
किन्तु ये था तुच्छ मात्र ही,
एक दे सब ले लेना था|
फिर भी करण इस धरा पर,
अपने आप में सेना था|
कवच-कुंडल पाकर भी देवराज,
अजेय न कर सके अर्जुन को|
सदा याद रखेगी दुनिया,
इंद्र के इस बड़े दुर्गुण को|
याद रखो यह बात ऐ दुनिया,
बिछाता जो दुश्मन की लाश|
अपने हिसाब और अपनी रूचि से,
लिखवाता वो अपना इतिहास|
जब तक है धरती मनुष्य है जब तक,
करण याद किया जाएगा|
उसके दान और यश-कीर्ति को,
कोई भूल नहीं पाएगा|
उसके दान और यश-कीर्ति को,
कोई भूल नहीं पाएगा|
***कृष्ण कुमार कैवल्य***
Motivational-Inspirational Poem on Mahabharat in Hindi / कर्ण-इंद्र प्रसंग से संबंधित शब्दार्थ/ भावार्थ–
प्रतिबद्ध-भाव – समर्पित भाव|
ज्येष्ठ – बड़ा, वरीय|
कुरुभूमि – कुरुक्षेत्र का मैदान|
विषपान – ज़हर पीना|
याचक – माँगने वाला|
कवच – छाती पर पहनने वाला एक अत्यंत कठोर आवरण (armor/armour)|
कुंडल – कानों में पहने वाले आभूषण|
धरा – धरती|
कोरा वचन – केवल वचन, खाली वचन|
वेश बदलना- रूप बदलना|
जीवन की शाम करना – ज़िन्दगी समाप्त कर देना|
मन वांछित – मन में रखी गयी इच्छा|
असह्य दर्द – असहनीय दर्द, अति कष्ट|
विस्मृत होकर – सब कुछ भूलाकर|
हाय लगना – शाप लगना, बद्दुआ लगना|
नत-मस्तक – सम्मान से सिर झुकाना|
सार – सारांश, संक्षेप|
साक्षी – गवाह|
Motivational-Inspirational Poem on Mahabharat in Hindi/कर्ण-इंद्र प्रसंग से जुड़े कुछ ख़ास शब्दों के अर्थ एवं उनकी व्याख्या –
अजेय – जिसे जीता न जा सके|
दुश्मन की लाश बिछाना – दुश्मनों को मार डालना|
परंतप, महाबाहो, पार्थ – महारथी अर्जुन के अन्य नाम हैं|
देवराज, पुरंदर, इन्द्रदेव, वृत्रहान, शतक्रतु – ये सभी नाम इंद्र के हैं|
राधेय, अंगराज, दानवीर, करण, रश्मिरथी, सूर्यपुत्र – ये सभी नाम महारथी कर्ण के हैं|
धर्म – धर्म-ग्रंथों में धर्म शब्द को कर्म के लिए ही प्रयोग किया गया है| वास्तव में मानवता ही धर्म है|
द्वापर – एक युग का नाम| इस युग के अंतिम चरण में महाभारत का युद्ध हुआ माना जाता है|
(चार युग – 1. सतयुग, 2. त्रेता, 3. द्वापर और 4. कलयुग)|
अमोघ – इंद्र द्वारा कर्ण को दिया गया एक अचूक अस्त्र| इसका प्रयोग जिस किसी भी प्राणी पर किया जाता था, उसका अंत होना निश्चित था| ख़ास बात यह थी कि इसका प्रयोग एक बार ही किया जा सकता था|
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