Motivational-Inspirational Story in Hindi "आत्मविश्वास"
Motivational-Inspirational Story in Hindi "आत्मविश्वास" किसी न किसी तरह हर इंसान से जुड़ी कहानी है|
हमारी ज़िन्दगी कभी भी एक समान नहीं चलती| इसमें अनेक उतार-चढ़ाव आते रहते हैं| हम सब इन उच्चावच से बहुत घबड़ाते हैं| ऐसा लगता है मानो हम अपने लक्ष्य को नहीं पा सकेंगे| ऐसा इसलिए होता है कि हमें अपने ऊपर विश्वास नहीं होता| साथ ही हम थोड़े परिश्रम के पश्चात ही परिणाम की अपेक्षा करने लगते हैं| सफलता न मिलता देख हम में से कई लोग विचलित होने लगते हैं| इसके लिए वे कठिन परिश्रम से इतर अन्य विकल्प भी आज़माने लगते हैं| अतः यह ध्यान रहे कि जीवन में लक्ष्य प्राप्ति का कोई लघु-पथ (short-cut) नहीं होता| हमें अपेक्षित परिश्रम करना ही होता है| पूरे उत्साह-आत्मविश्वास के साथ जो सही दिशा में परिश्रम करते हैं, उन्हें सफ़ल होने से कोई नहीं रोक सकता|
Motivational-Inspirational Story in Hindi "आत्मविश्वास" के पात्र –
- दिव्यांशु (दिव्य), प्रत्युष, विभू एवं सनोज – मेडिकल की तैयारी कर रहे विद्यार्थी|
- मालती देवी – दिव्यांशु की बुआ
- सर्वेश्वर दयाल –दिव्यांशु के पिताजी
- राधिका आप्टे – प्रत्युष की माताजी
- बाबा – ज्योतिषी
- दिनेश लाल -दिव्यांशु के फुफाजी
- ब्रज – दिव्यांशु का फुफेरा भाई
दिव्यांशु आई.एस.सी. पूरी कर चुका था| वो आगे मेडिकल की तैयारी हेतु अलीगढ़ से दिल्ली अपनी बुआ मालती देवी के यहाँ चला गया| अपनी घरेलु परेशानियों को देखते हुए उसके पिता सर्वेश्वर दयाल ने उसे अपनी बहन के पास भेजा था| पढ़ने में होनहार दिव्यांशु अपने सपने को पूरा करने में पूरे मन से लग गया| धीरे-धीरे उसकी पहचान उसके क्षेत्र के तीन लड़कों प्रत्युष, विभू एवं सनोज से हो गयी| वे भी उसकी तरह मेडिकल की तैयारी कर रहे थे| वे सभी अच्छे साथी बन गए| प्रत्युष उसका सबसे खास मित्र बना| दिव्यांशु स्वयं तैयारी करता था जबकि उसके मित्र एक स्थानीय कोचिंग में|
प्रत्येक रविवार दिव्यांशु घर से घुमने हेतु अपने मित्रों के साथ निकलता| इस क्रम में टहलते हुए अक्षरधाम मंदिर, बौद्ध-स्तूप या इन्द्रप्रस्थ पार्क में से किसी एक जगह वे जाते थे|वहाँ वे विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते| दिव्यांशु आज की गला-काट प्रतिस्पर्धा (cut neck competition) से भीतर ही भीतर डरा हुआ रहता था|
एक दिन सुबह वो प्रत्युष के घर गया| देखा कि उसका मित्र अपनी माँ राधिका आप्टे के संग कहीं जा रहा था| उसके मित्र ने कहा – दिव्यांशु, तुम अच्छे समय पर आए हो| मैं तुमसे एक ख़ास बात करने जा रहा हूँ| ये तुम्हारे करिअर में भी मील का पत्थर साबित होगा|
दरअसल मेरे मुहल्ले में एक बाबा आए हुए हैं| वे एक सप्ताह यहाँ ठहरेंगे| उनकी खासियत यह है कि वे मात्र 501/- रुपये में किसी का हाथ देखकर सटीक भविष्यवाणी करते हैं| साथ ही किसी के बिगड़े भविष्य को भी संवारने के लिए सही विधि बतलाते हैं|
दिव्यांशु उत्सुकता से – अच्छा! क्या ये सच है?
इसी बीच राधिका आप्टे बोल पड़ीं – हाँ बेटा| ये बिल्कुल सच है| उनके पास लोगों की लाईन लगी रहती है| मैं तो कल ही प्रत्युष को ले गयी थी| उन्होंने बताया कि इसका मेडिकल में जाने का पूरा-पूरा योग है| हां, कुछ ग्रह काटने की विधि आज वे हमें बताएँगे| साथ ही कुछ आवश्यक पत्थर (स्टोन) व ताबिज़ भी देंगे|
Motivational and Inspirational Story in Hindi
उन्होंने आगे पुनः कहा – बेटे, करीब-करीब 8-10 हज़ार में सब काम हो जाएगा| सच पूछो तो डॉक्टर बनने के लिए ये रकम कुछ भी नहीं| शर्मा जी के यहाँ वे ठहरे हुए हैं| यदि तुम निश्चित सफ़लता चाहते हो तो हमारे संग अवश्य चलो|
डॉक्टर बनने का उत्कट अभिलाषी दिव्यांशु अपने को रोक नहीं पाया| वो बिना समय गंवाए उनके साथ चल पड़ा|
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रास्ते में दिव्यांशु डॉक्टर बनने का सपना देखते जा रहा था| निश्चित रुप से डॉक्टर बन जाने का अहसास उसे अति सुकून दे रहा था| अभी अपने दिवास्वप्न में वो डूबा ही था, तभी प्रत्युष उसका ध्यान भंग करते हुए उसे रुकने को कहा| अब वे शर्मा जी के घर में थे|
करीब डेढ़ घंटे के इंतज़ार के बाद तीनों बाबा के पास गए| प्रत्युष को उन्होंने एक ताबीज़ दी और एक पुखराज पत्थर दिया| उस पत्थर को सोने(gold) या कांसे(bronze) की अंगूठी में मढ़वाने को कहा| फिर उसे दाएं हाथ की अनामिका अंगुली(ring finger) में पहनने की सलाह दी| जबकि ताबीज़ को दायीं भुजा पर बाँधने की बात कही| साथ ही उसकी माँ को एक मन्त्र बताया; जिसका पाठ नित्य सुबह करने को कहा|
अब दिव्यांशु की बारी आई| बाबा ने उसकी जन्मतिथि पूछी| फ़िर उसके मस्तक को पढ़ा और दोनों हाथों की हथेलियों को भी अलग-अलग देखा|
बाबा – वत्स, तुम्हारे भाग्य में बकरी बैठी हुई है| आने वाला आठ माह तुम पर बहुत भारी है| डॉक्टर बनने का योग तो बहुत कम है| हां भाग्य-सुधार के लिए तुम्हें काफ़ी प्रयास करने होंगे| साथ ही तुम्हारे पिताजी या माताजी को साधना भी करनी होगी| यदि तुम ये सब कराने में सफ़ल रहे तो अवश्य ही डॉक्टर बन जाओगे| आगे ईश्वर मालिक है| इस कार्य के लिए तुम्हें पैसे तथा मेहनत दोनों लगेंगे| उक्त सम्बन्ध में उन्होंने उसे कई उपाय भी बताए|
दिव्य – बाबा, यदि आप ही सब साधना एवं उपाय कर दें तो कितने पैसे लगेंगे?
बाबा – (गणना कर एवं सोंचकर) वत्स, सत्रह हज़ार लगेंगे|
यह सुनकर दिव्यांशु कहता है – अच्छा बाबा| मैं कल आपसे मिलूंगा|
सभी वहाँ से चले| दिव्यांशु सोंच रहा था कि कैसे वो ये सारे प्रकरण बुआ या पापा से कहेगा एवं कैसे 17,000 रुपये की मांग करेगा|
रास्ते में प्रत्युष की माँ राधिका आप्टे ने कहा – बेटे दिव्य, तुम्हारे पापा तो यहाँ हैं नहीं| वे होते तो गंभीरता से सब कुछ संभाल लेते| खैर, तुम सारे उपाय बाबा से ही करा लो|
उक्त बातों को दिव्य सुन तो रहा था, पर उसका मुंह उतरा हुआ था तथा वो निरुत्तर था|
उसे ऐसा देखकर व उसकी परिस्थिति भाप कर वे कहती हैं– बेटे, तुम पैसे की चिंता मत करना| मैं भी तुम्हारी माँ जैसी हूँ| तुम्हारे सपने पूरे करने के लिए मैं पैसे आज ही तुम्हें दे देती हूँ| तुम धीरे-धीरे लौटाते रहना|
यह सुनते ही दिव्यांशु का चेहरा खिल उठा| उसने कहा कि वो शाम सात बजे तक अपनी राय दे देगा|
दोपहर बाद दिव्यांशु अपनी मालती बुआ को बड़े खुश होकर सारा वृत्तान्त सुनाया|
यह सुनते ही उसकी बुआ जो अभी-अभी स्कूल से शिक्षण कार्य कर आईं थीं, थोड़े गुस्से में आ गयीं| वह बोलीं – वाह बाबू, खूब मेडिकल की तैयारी कर रहे हो| यही हाल रहा तो तुम्हारा बंटाधार हो जाएगा| इस सम्बन्ध में मैं कुछ नहीं कहना चाहती| शायद तुम्हें तकलीफ़ पहुंचे| हो सकता है कि मेरी बुद्धि कम हो| तुम अपने पिताजी से इस सम्बन्ध में ज़रूर बात कर लो|
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तत्पश्चात दिव्यांशु ने अपने पिता से बात करने की हिम्मत जुटाई| वो दूसरे कमरे में गया| फिर वीडियो कॉल कर सारी बातें बतानी शुरू की|
इसी बीच सर्वेश्वर दयाल झुंझला गये| उन्होंने कहा– पहले तुम अपने लालच के ऑफ़र वाले इस गड़बड़ 4 जी सीम से बातें करना बंद करो| मेरा दिया हुआ बी.एस.एन.एल. के सीम का उपयोग क्यों नहीं करते? अब पुनः दिव्यांशु क्रम से सारी बातें उनको बताता है| उसके पिता सर्वेश्वर दयाल सेवानिवृत्त रेलवे कर्मचारी थे| उन्होंने उसकी बातें ध्यान से सुनने के बाद कहा – बेटा, जो मैं कहने जा रहा हूँ, उसे ध्यान से सुनना|
अब वे कहते हैं – बेटा, क्या हाथ देखकर किसी के भाग्य का फ़ैसला कोई अन्य व्यक्ति कर सकता है? किसी ने तुम्हारी जन्मतिथि पूछी, मस्तक देखा और बता दिया तुम्हारा भाग्य? क्या तुम्हारा आत्मविश्वास इतना कमज़ोर है कि कोई दूसरा उसमें विचलन पैदा कर दे रहा है? क्या किसी की बातों को बिना तर्क की कसौटी पर परखे स्वीकार कर लेना चाहिए? क्या तुम्हारा विज्ञान वस्तुनिष्ठता (objectivity) पर नहीं चलता? पर अभी-अभी तुम्हारे द्वारा कही गयी बातें ये साबित करती हैं कि तुम सच में डॉक्टर नहीं बन सकते| डॉक्टर क्या, तुम किसी लक्ष्य को नहीं पा सकते|
फिर उन्होंने कहा – बेटा, जिसके हाथ नहीं होते, क्या वे भाग्यहीन होते हैं? नेपोलियन बोनापार्ट को जब एक ज्योतिषी ने यह बताया था कि उसके हाथ की भाग्य रेखा छोटी है| इसलिए वो शासक नहीं बन सकता| यह सुनकर नेपोलियन ने अपनी हाथ की उस भाग्य रेखा को चाकू से लम्बी कर दी| इसके बाद उसने कहा– देखिए महानुभाव, मेरी भाग्य-रेखा अब लम्बी हो गयी| अब मुझे राजा बनने से कोई नहीं रोक सकता| अर्थात नेपोलियन सिर्फ कर्म में विश्वास करता था|
खामोश होकर दिव्यांशु सब कुछ सुनता जा रहा था|
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उसके पिता ने लम्बी साँसें भरकर कहा– दिव्यांशु, तुम आज से ही तपस्वी की तरह मेडिकल की तैयारी में जुट जाओ| केवल अपने लक्ष्य पर ध्यान रखो व हर हाल में उसे पाओ| याद रखो, शुभ काम के लिए हर समय उपयुक्त है और अशुभ कार्य के लिए सारा समय अनुपयुक्त| हमेशा जीत का जज़्बा रखो| आत्मविश्वास तुम्हारा परम मित्र है| इसे सदा अपने साथ रखो| बाद में सारे मित्रों को| तुम सही दिशा में कठिन परिश्रम करो| फिर देखो, दुनिया की कोई ताकत तुम्हे जीतने से नहीं रोक सकती| हम सभी का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है|
पुनः उन्होंने कहा – बेटा, पैसा बहुत कठिनाइयों को सहकर कमाया जाता है| इसलिए बुद्धिमान आदमी उसका उपयोग बहुत सोंच-समझकर और सही जगह करता है| आगे तुम स्वयं समझदार हो|
इन शब्दों को सुनने के क्रम में उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे|
अंत में वे कहते हैं – हाँ, एक बात और कहना चाहता हूँ बेटा | क्या तुम समझते हो कि तुम्हें वाकई सत्रह हज़ार रुपये अपने दोस्त के बताए रास्ते पर चलने के लिए खर्च करने चाहिए? यदि हाँ, तो मैं निःसंकोच तुम्हें पैसे देने को तैयार हूँ|
दिव्य (रोते हुए) – पापा, आप मेरे सच्चे गुरु हैं| मुझे आप पर गर्व है| आप दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं| अब मेरे मन में कोई दुविधा नहीं है| मम्मी को मेरा प्रणाम बोल दीजियेगा| मैं उनसे कल बातें करुंगा| प्रणाम पापा| यह कहकर मोबाईल रख दिया|
जब आवाज़ बंद हो गयी तो मालती दिव्यांशु को देखने उस कमरे में आती हैं| उन्होंने देखा कि उसके चेहरे पर पूर्ण आत्मविश्वास झलक रहा था| उसके आँसू उसकी हार नहीं बल्कि उसकी जीत को बयाँ कर रहे थे| उसकी बुआ उसके इस भाव को देख कर बहुत प्रसन्न हुईं| बातचीत के सम्बन्ध में बिना कुछ पूछे हीं उन्होंने सब कुछ जान लिया| फिर वे अपने कमरे में चली गयीं|
संध्या का समय था| इस समय दिव्यांशु अपनी पढ़ाई कर रहा था| इसी बीच मोबाईल बज उठा| उधर से कुछ आवाज़ आई| इस पर दिव्यांशु ने कहा – नहीं आंटी| मुझे उन चीजों की ज़रूरत नहीं है| प्रत्युष को भी यह बता दीजिएगा| आपने मेरे बारे में सोंचा, यही मेरे लिए कम नहीं है|
राधिका – बेटे, मुझे तुमसे हमदर्दी है| तुम्हारी स्थिति जानकर मुझे बहुत दुःख भी है| जाने आगे तुम्हारा क्या होगा?
समय बीतता गया| दिव्यांशु सब से मिलता-जुलता, मित्रों से मेडिकल विषयों पर चर्चे करता एवं अपनी धुन में लगा रहता|
और फिर एक दिन…. मेडिकल प्रवेश परीक्षा (medical entrance exam) का परिणाम आया| दिव्यांशु ने देखा कि उसका चयन हो चुका है, जबकि उसके तीनों मित्रों को इसमें असफलता मिली है| इस परिणाम से वह काफी खुश भी था एवं दुखी भी|अब वह अपनी इस सफ़लता का समाचार मालती बुआ को दिया और उनको तथा फुफाजी दिनेश लाल को प्रणाम किया| फिर पास खड़े अपने से छोटे फुफेरे भाई ब्रज को गोद में उठा लिया| उसकी बुआ ने कहा – बाबू, तुमने हम सबका मान बढ़ा दिया| दिनेश लाल ने अपने पुत्र ब्रज को ढेर सारे मिठाई के पैकेट लाने को कहा|
सभी ने ख़ुशी के क्षण आपस में बांटे व मिठाईयां खाईं|
अब दिव्यांशु ने मिठाईयों के तीन पैकेट लिए और प्रत्युष के यहाँ चल पड़ा| वहाँ पहुंचकर उसकी माँ राधिका आप्टे के पांव छुए| तत्काल उन्होंने उदास मन से कहा – खुश रहो बेटा| मुझे तुम्हारी सफलता पर ख़ुशी है, पर अपने बेटे की हार पर बहुत दुखी हूँ| अब लगता है ऊपर तक पैसे छींटने पड़ेंगे|
दिव्य यह सुनकर कुछ भी बोलना उचित नहीं समझा|वह अपने दोस्त को मिठाई का पैकेट दिया| उसका मित्र सिर नीचे किये हुए था| उसे ऐसा देखकर दिव्यांशु उसके कंधे पर हाथ रख कर कुछ कहना चाहता था| तभी वो बोल पड़ा – यार माफ़ करना|आज मैं काफ़ी अपसेट हूँ| कल बातें करते हैं| अपने मित्र दिव्यांशु को बधाई देना भी उसे याद न रहा| फिर दिव्यांशु चुपचाप वहाँ से अपने मित्र विभू के यहाँ चल दिया|
विभू के घर पहले से सनोज भी बैठा हुआ था| दिव्यांशु ने उन्हें भी मिठाई के पैकेट दिए| उन्होंने उसे बधाई दी| दिव्य उन्हें कहता है – यार, तुम तीनों के सलेक्शन नहीं होने से मैं बहुत दुखी भी हूँ| पर याद रखो, हम सबको डॉक्टर बनना है| यह सुनकर वे दोनों सिर हिलाते हैं| थोड़ी देर उनसे बातें करके दिव्यांशु वहाँ से सीधे अक्षरधाम मंदिर चला गया| वहाँ वो काफी देर तक बैठा रहा, जहां उसे दिव्य शान्ति महसूस हो रही थी|
संध्या 04 बजे वह अपनी मालती बुआ के घर पहुंचा| वहाँ पहुँचते ही देखता है कि उसके पिता चौकी पर बैठे हुए हैं| उसने दौड़ कर उनके पाँव छुए| पिता ने उसे गले से लगा लिया| कुछ देर तक पिता-पुत्र इस अवस्था में रहे| वे दोनों चुप थे एवं उनकी आँखों से ख़ुशी के आंसू छलक रहे थे|
—कृष्ण कुमार कैवल्य
Motivational-Inspirational Story in Hindi "आत्मविश्वास" से जुड़े शब्दार्थ –
उच्चावच – ज़िन्दगी में आ रहे उतार-चढ़ाव
इतर – हटकर
विचलन होना – हिला देना, हलचल मचा देना
जन्मजात चक्रवर्ती – जन्म से ही होनहार
प्रतिभागी – प्रतियोगी
गलाकाट प्रतिस्पर्धा – अत्यंत कठिन प्रतियोगिता
उत्कट अभिलाषी – प्रचंड अभिलाषा रखने वाला
दिवास्वप्न – दिन का सपना
वत्स – पुत्र, बेटा
बंटाधार – बर्बाद होने के अर्थ में
नेपोलियन बोनापार्ट – फ्रांस का भूतपूर्व शासक
उपयुक्त – उचित, सही
पढ़ें एक ख़ास प्रेरणादायी कविता “अंधा कौन?”
इस कहानी(Motivational and Inspirational Story in Hindi) को लिखने के साथ ही मैं एक बात कहना चाहता हूँ| हर व्यक्ति में एक जैसी प्रतिभा नहीं होती| सभी ‘जन्मजात चक्रवर्ती’ भी नहीं होते| इसका अर्थ यह नहीं कि जिस प्रतिभागी में प्रतिभा की कमी है, वो अपना लक्ष्य नहीं प्राप्त कर सकता| प्रतिभा का विकास किया जा सकता है| ये नेतृत्व-क्षमता जैसी हीं होती है| जैसे-जैसे इंसान कठिन परिश्रम करता जाता है, समय से साथ-साथ उसकी प्रतिभा भी निखरती जाती है| मेहनत से सब कुछ संभव है| इसलिए अपनी जीत के प्रति आश्वस्त रहें एवं सदा आशावादी दृष्टिकोण बनाए रखें|
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