Motivational-Inspirational Poem in Hindi – “सफ़लता”
Motivational-Inspirational Poem in Hindi – “सफ़लता” एक सुन्दर एवं प्रेरक रचना है| ज़िन्दगी में हर व्यक्ति सफ़लता प्राप्त करना चाहता है, पर उसके लिए निर्धारित मानदंडों पर चलना आवश्यक होता है| व्यक्ति का जितना बड़ा उद्देश्य होता है, उसके लिए उसे उतना ही अधिक मूल्य चुकाना पड़ता है| अर्थात् उसे पाने के लिए इंसान को उतना ही अधिक मेहनत, त्याग, तपस्या एवं समर्पण करना पड़ता है| सफ़लता प्राप्त करने की सीढ़ी करेले की तरह होती है| वो खाने में कड़वी स्वाद देती है, किन्तु उसका प्रतिफ़ल अत्यंत मधुर होता है| इन्हीं खूबसूरत सच्चाईयों को बताती कविता है – सफ़लता|
सफ़लता
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जीवन में कर्म प्रधान है,
चाहत-मात्र से कहाँ कुछ होता?
कर्मयोगी को जीत है मिलती,
अकर्मण्य यहाँ सब कुछ है खोता|
जीवन में कर्म प्रधान है,
चाहत-मात्र से कहाँ कुछ होता?
सफलता हेतु कुछ अन्य हैं शर्तें,
आत्मविश्वास, त्याग, समर्पण|
और इसके लिए ज़रूरी,
धैर्य, निरंतरता और मार्ग-दर्शन|
जीवन में कर्म प्रधान है,
चाहत-मात्र से कहाँ कुछ होता?
मार्ग-दर्शन यदि मिल न सके तो,
प्रकाश अपना तुम स्वयं से पाओ|
मन भटकाए यदि तुम्हें तो|
अंतर्मन के कहे पे जाओ|
जीवन में कर्म प्रधान है,
चाहत-मात्र से कहाँ कुछ होता?
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जीवन के हर क्षण की कीमत,
हर पल है होता अमूल्य|
जितना बड़ा लक्ष्य है होता,
उसका उतना होता है मूल्य|
जीवन में कर्म प्रधान है,
चाहत-मात्र से कहाँ कुछ होता?
धीमे आए अवसर को पहचानो,
आता ये शीघ्र चला जाता है|
समय की महत्ता को तुम जानो,
बीते तो फ़िर कहाँ आता है?
जीवन में कर्म प्रधान है,
चाहत-मात्र से कहाँ कुछ होता?
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चाहत है सफ़लता की तो,
बच्चों सी तुम ज़िद कर लो|
अपने लक्ष्य को अंततः पाकर,
दुःख सभी के तुम हर लो|
जीवन में कर्म प्रधान है,
चाहत-मात्र से कहाँ कुछ होता?
कर्मयोगी को जीत है मिलती,
अकर्मण्य यहाँ सब कुछ है खोता|
जीवन में कर्म प्रधान है,
चाहत-मात्र से कहाँ कुछ होता?
-—कृष्ण कुमार कैवल्य |----
Motivational-Inspirational Poem in Hindi – “सफ़लता” से जुड़े शब्दार्थ/भावार्थ –
कर्मयोगी – कर्म में लीन रहने वाला, अपने काम में लगा रहने वाला|
अकर्मण्य – कर्म से मुंह मोड़ने वाला, काम नहीं करने वाला|
अमूल्य – जिसका मूल्य नहीं लगाया जा सके, अनमोल |
महत्ता – महत्त्व |
हर लेना – दूर करना |
“अपना प्रकाश स्वयं से पाना” – इसका भावार्थ यह है कि हर व्यक्ति के अन्दर ज्ञान का प्रकाश पुंज होता है| उसी ज्ञान के प्रकाश से इंसान अपने को आलोकित कर सकता है, अपने जीवन की अज्ञानता को दूर कर सकता है| हर आदमी का अंतर्मन (अंतरात्मा) उसका मार्गदर्शक होता है| ये बातें उपनिषद् (महान दार्शनिक ग्रन्थ) में बतायी गयी हैं|
महात्मा बुद्ध ने भी कहा था – “अपना प्रकाश स्वयं बनो ” |
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