Motivational and Inspirational Poem - "कर्मवीर बनो"
प्रस्तुत कविता – ‘कर्मवीर बनो’ (Motivational & Inspirational Poem) एक ऐसी कविता है, जो मनुष्य के संकट से जूझने की प्रवृत्ति को बतलाता है| जबकि इसका मूल भाव है – मनुष्य बाधाओं से नहीं डरे एवं प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष खतरों से सावधान रहे| वो अपने लक्ष्य पर निगाह रखकर अपना कर्म करता जाए| निस्संदेह उसे सफ़लता मिलेगी|
कर्मवीर बनो
जब भी लोगों के जीवन में संकट आ जाता है|
मानव विचलित हो जाता है, घबरा वो जाता है|
कितने बढ़ते सांसें भरकर और कमर भी कसकर|
बढ़ते वो तेजी से आगे, झटपट चिंतित होकर|
पुनः किसी बाधा के कारण, किसी चोट या दुःख के कारण|
रुक जाते हैं घायल होकर, अपनी शक्ति खोकर|
नहीं बनूंगा दास समय की, गर उनमें प्रण होता|
बिना रुके वे चलते रहते, एक स्पष्ट रण होता|
पाते नहीं सही दिशा जो, वे विफ़ल हो जाते हैं|
घोर हताशा के कारण फिर, निर्बल हो खो जाते हैं|
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ले हाथ में विजय-पताका, कुछ लोग ऐसे होते हैं|
बढ़ते जाते वे अग्नि-पथ पर, धैर्य नहीं खोते हैं|
आते अनेक बंधन राहों में, चाहती कसें इनको बाहों में|
पर कर्मवीर नहीं बंध जाते, कभी ऐसे बंधन में|
हूँ मैं रात्रि के अंतिम पहर में, ऐसे चिंतन को लेकर|
सहते कष्ट आगे बढ़ते हैं, इनको मित्र समझकर|
आगे बढ़ने पर दिखता जब, शुभ्र अरुण की लाली|
तब छा जाती है उनके मन पर, समाँ इन्द्रधनुष वाली|
पा जाते हैं दिवा-काल वे, लड़कर घोर तम से|
अपने अथक परिश्रम से और अपने बल से दम से|
है रणभूमि सारा जीवन, सभी लौकिक मानव का|
जो इसका पार पा जाता, बनता आदर्श जन-जन का|
तुम भी चाहते अगर विजय को, रखो ज्वलंत अपने प्रण को|
इस प्रकार तुम भी वर लोगे, कुरु-भूमि के रण को|
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होते सफल वही जन हीं जो, निर्देश उचित पाते हैं|
ज्ञान सही पाकर पार्थ भी, धर्म-युद्ध लड़ते हैं|
होते हैं जो कर्मवीर वे, कार्य सरल कर लेते हैं|
खड़ा हिमालय में भी अपनी, सुगम राह ढूंढ लेते हैं|
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इसलिए,
सभी दशा को ध्यान में रखकर चलना है ज़रूरी|
क्योंकि पग-पग पर हे मानव, बिछी प्रवृत्ति आसुरी||
————कृष्ण कुमार कैवल्य|————
शब्दार्थ/भावार्थ –
विचलित होना – डंवाडोल होना, पथ से विमुख होना|
विजय-पताका – विजय का झंडा, (जीत का भाव)
अग्नि-पथ – संघर्ष भरा रास्ता
रात्रि का अंतिम पहर – दुःख की समाप्ति का समय
समाँ – दृश्य
दिवा-काल – दिन का समय, (सफलता)
तम – अँधेरा
लौकिक – इस दुनिया का
कुरु-भूमि – कुरुक्षेत्र की भूमि (अपना रणक्षेत्र)
धर्म-युद्ध – सत्य व न्याय के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध|
पार्थ – अर्जुन
आसुरी प्रवृत्ति – राक्षसी-भाव, राक्षसी-मनोवृत्ति, (आपराधिक सोंच)
दोस्तों, इस बात को आपको बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि यह कविता – ‘कर्मवीर बनो’ (Motivational & Inspirational Poem) मेरे द्वारा लिखी गयी पहली कविता है| इसे मैंने 05/09/1998 को (शिक्षक दिवस के दिन) लिखा था|
Some motivational and inspirational quotes in Hindi-
- मित्रता की गहराई को परिचय की लम्बाई से नापा नहीं जा सकता|
- कला के माध्यम से कलाकार स्वयं को उजागर करता है, ना कि अपनी वस्तुओ को|
-— रवीन्द्रनाथ टैगोर —-
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