An Inspirational Poem on Humanity in Hindi/"मानवता"
An Inspirational Poem on Humanity in Hindi/”मानवता” पर कविता – मनुष्य को जीने की राह दिखाती एक कविता है| दुनिया में सबसे बड़ा धर्म है – “मानवता”| क्योंकि हर धर्म इसी से शुरू होता है और इसी पर समाप्त हो जाता है|
यदि कोई धर्म इंसानियत को कुचलता है, तो निःसंदेह वो धर्म हो ही नहीं सकता| संसार में जितने भी युगपुरुष हुए, वे सभी इंसानियत के पुजारी थे| किसी की महानता इस बात से देखी जाती है कि उसने मानव-कल्याण के लिए क्या किया|
प्रस्तुत है इंसानियत को उद्घाटित करती कविता – “मानवता”|
मानवता
न्याय बहुत होता है ऊँचा,
इससे ऊँची दया-करुणा|
सही ईमान रखो हे मानव!
करो नहीं किसी से घृणा|
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कोई होता मितभाषी और
होता कोई है मुखर|
यहाँ जीत के लिए ज़रूरी,
कर्म करना होता है प्रखर|
किन्तु याद रखना ये ज़रूरी,
सब कुछ जीत नहीं होता|
इंसान के लिए मान बड़ा,
वो सम्मान कभी नहीं खोता|
करे बुरा कर्म यदि दूजा,
भला-मानव समझे मर्म|
चाहिए मनुष्य को सदा यही,
न छोड़े अपना सत्कर्म|
डूब रहा बिच्छू था जल में,
गये बचाने फ़कीर|
मर न जाए कहीं वो बिच्छू,
समझ रहे थे पीर|
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कई डंक खाकर उन्होंने,
बचाए उसके प्राण|
दूजे की ख़ातिर दयानिधि,
दे देते अपनी जान|
कोई अगर करता है बुरा,
क्या करने लगे हम पाप?
सज्जन विचलित होते नहीं,
रहते हैं वे निष्पाप|
युद्ध के भी होते नियम हैं,
मानवता का रखते हैं ध्यान|
इसलिए मृत-घायल सैनिक का,
सभी करते हैं सम्मान|
सज्जनता में है मानवता,
नहीं भीरू तू इंसान|
एक रक्षक बन कर दे दो तुम,
समाज को अभयदान|
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पर कुछ मानव बन रहे हैं दानव,
समाज उनसे हो रहा दो-चार|
अपने लाभ व लोभ के कारण,
त्याग रहे अच्छे वे विचार|
बात-बात पर खो रहे आपा,
इज्जत पर दे रहे हैं धावा|
जो चीज नहीं है उनकी,
उन पर भी कर रहे हैं दावा|
ऐसी हालत में है ज़रूरी,
ऐसे दानव का अंत ज़रूरी|
सभी आवश्यक कदम उठाकर,
होगी मानव की रक्षा पूरी|
होगी मानव की रक्षा पूरी|
***कृष्ण कुमार कैवल्य***
An Inspirational Poem on Humanity in Hindi/”मानवता” पर कविता से संबंधित शब्दार्थ/भावार्थ –
मितभाषी – कम बोलने वाला|
मुखर – ख़ूब बोलने वाला, बोलने को तत्पर, वाचाल, वाक्पटु (outspoken)|
प्रखर – प्रबल, तीक्ष्ण, तेज, प्रचंड|
दूजा – दूसरा व्यक्ति, अन्य लोग|
मर्म – स्वरुप, भेद, रहस्य, गूढ़ अर्थ|
सत्कर्म – अच्छे कर्म(काम)|
पीर – 1. दुःख, दर्द, 2. संत- फ़क़ीर|
दयानिधि – दयावान, दया के स्वामी, ईश्वर|
दानव – राक्षस, दुष्टों के लिए प्रयुक्त शब्द|
आपा खोना – स्वयं पर नियन्त्रण खो देना|
धावा – आक्रमण, हमला|
निष्पाप – बिना पाप के|
विचलि होना – डिग जाना, पथ से हट जाना|
भीरू – डरपोक, कायर|
अभय दान – भय से बचाने का वचन देना, निर्भय करना|
दो चार होना – परेशान होना, मुसीबत से जुझना, सामना करना|
गूढ़ – गहरे अर्थ वाला, विशेष अर्थ वाला|
नरसी मेहता – ये जूनागढ़ (गुजरात) में जन्मे भारत के महान संत एवं कृष्ण भक्त थे|
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An Inspirational Poem on Humanity in Hindi/”मानवता” पर कविता –
इसे लिखने के क्रम में यहाँ मानवता से जुड़ी कुछ अति प्रासंगिक बातों का उल्लेख करना चाहता हूँ|
संत तुलसीदास ने ‘रामचरित मानस’ में लिखा है –
परहित सरिस धर्म नहिं भाई|
परपीड़ा सम नहिं अधमाई|
(परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं है और दूसरों को दुःख पहुंचाने के समान कोई पाप नहीं)|
महात्मा गाँधी को महान संत नरसी मेहता का एक भजन काफी पसंद था, जिनकी दो पंक्तियों को उद्धृत करना चाहूँगा –
वैष्णव जन तो तैणे कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे|
पर दुःखे उपकार करे तोये मन अभिमान न आणे रे ||
(वैष्णव तो वो है जो दूसरों के दुःख-दर्द को समझे| यदि आप दूसरों पर उपकार करते हैं तो आपके द्वारा किए गए उपकार का तनिक भी घमंड आपमें नहीं आना चाहिए)|
सभी महान संतों की बातें अत्यंत गूढ़ होती हैं| हम जितनी गहराई में जाएंगे, उनके अर्थ उतने ही स्पष्ट होते जाएंगे|
हाँ, ये बात और है कि मानवता की रक्षा हेतु की गयी हिंसा भी पाप नहीं अपितु पुण्य है | पर ऐसे काम क़ानून (Law) के अनुसार ही होना चाहिए | धन्यवाद्|
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