Heart-Touching Story on untouchability in Hindi - अछूत
Heart-Touching Story on untouchability in Hindi - "अछूत" जाति-व्यवस्था पर चोट करती एक गंभीर कहानी है|
भारत जैसे महान देश में लोकतंत्र के समक्ष गंभीर चुनौतियों में से एक जातिवाद भी है| जितनी जल्दी हम अपने दिलो-दिमाग से इसे निकाल दें, उतना ही समाज का भला होगा| कहानी कुछ इस प्रकार है -
कहानी – अछूत
कौशल्या हर दिन की तरह अपने घर की साफ-सफाई और सारे काम निबटा बाहर में आकर गीले कपड़े तार पर डाल रही थी। इसी बीच एक कपड़ा व्यापारी अपनी टेंपो पर लाउडस्पीकर से अपने सामान की जानकारी देते हुए कौशल्या के घर के सामने से आगे की ओर जा रहा था कि अचानक वह उसके घर के पास रुका। उसे याद आयी कि उसके बॉटल का पानी ढक्कन खुलने की वजह से पूरी तरह गिर चुका है। इलाका ग्रामीण व पिछड़ा था और ऊपर से गर्मी की दोपहरी।
उसे बहुत जोर से प्यास भी लगी थी। उसके हाथों की कलाईयों पर रुद्राक्ष की माला, गले पर पीला कपड़ा और ललाट पर चंदन- टीका शोभायमांन हो रहे थे।
उसे सामने गेट के अंदर एक काफी गरिमा युक्त महिला जो सोने के जेवर पहने नजर आ रही थी। उसने कुछ संकोच करते कहा बहन जी! बहुत जोर से प्यास लगी है। पानी मिलेगा?
उस महिला ने विनम्रता पूर्वक उससे कहा - भाई जी, आप इस चौकी पर बैठिए मैं पानी लाती हूं।
2 मिनट के अंदर कौशल्या गुड़ और पानी लिए आई और उसे सम्मानपूर्वक दिया।
व्यापारी गुड खाते हुए अभी एक घूंट पानी पिया ही था कि उसने कहा वैसे बहन जी, आपसे पूछने की जरुरत तो नहीं है। फिर भी जानना चाहता हूं कि आप किस जाति की हैं?
वह महिला उसकी बातों को ताड़ गई। उसने कहा अब आपसे क्या छुपाना भाई साहब। मेहतर का काम हम लोग करते हैं तो हुए तो मेहतर ही।
व्यापारी चौंककर - राम राम। यह क्या बोल रही हैं बहन जी। कितना साफ सुथरा दिख रही हैं आप। रंग-रूप और कपड़े से देखने में कम से कम सुनारीन तो अवश्य लग रही हैं।
बहन जी, पानी नहीं देना है तो ये अलग बात है। परंतु झूठ तो मत बोलिए। और अपने आप को नीचे तो मत गिराइए। कहां आप कहां मेहतर। मेरी अंतरात्मा तो बिल्कुल नहीं मान रही कि आप..... कह कर वह चुप हो गया।
कौशल्या को उस फेरीवाले व्यापारी की बात सुनकर मन में आग सी लग गई। परंतु अपने आप को सामान्य भाव में लाकर कहा - भाई साहब, झूठ क्या बोलूं? मैं मेहतर हूं तो मेहतर ही ना कहूंगी। अब मेरे ऐसे भाग्य कहां कि मैं ऊंची जाति की बन पाऊं। और ऊपर से हम लोग ठहरे सदियों से दबाए गए इंसान। ये तो लोकतंत्र है कि हमलोग खुल कर जी पा रहे हैं| वरना......|
फिर आगे उसने कहा कि हम जैसे गरीब लोग सोने के जेवर नहीं पहन पाते हैं। यह तो रोल्ड गोल्ड हैं।
यहां तक कि यह बाल्टी जिसमें कपड़े आप देख रहे हैं, इसी बाल्टी को हम लोग शौचालय में भी रखते हैं| इसी में पानी भरकर हम लोग खाना भी बनाते और पीते भी हैं। हम गरीबों के पास 4-5 बाल्टी कहां से?
इतना सुनते ही उस फेरी वाले व्यापारी को ओकाई आने लगी। उसका मन उल्टी जैसा होने लगा।
बगल की एक लड़की जो वहीँ पर बैठी हुई थी, ने उसे संभालते हुए कहा - पानी पीजिए चाचाजी। नहीं तो जान चली जाएगी।
उस फेरी वाले ने जातीय श्रेष्ठता का दंभ भरते हुए अभिमान से व्यंग्यात्मक अंदाज में कहा - पानी पीकर कौन सी जान बच जाएगी। कुछ बातें हैं जो मैं नहीं कह सकता। वह मन ही मन सोंचता है कि पानी पीकर अपना कुल भ्रष्ट क्यों करूं? गलती से एक घूंट पीकर तो पछता ही रहा हूं।
यह कहते हुए फेरीवाला व्यापारी कुछ भूनभूनाते हुए आगे बढा।
वह कुछ दूर आगे निकल गया था। एरिया सुनसान था। तभी चार लड़कों ने उसे रोक लिया और कहा- सारे पैसे दे दो और गाड़ी से उतरो| वरना हम तुम्हें जान से मार देंगे। उनमें से तीन के हाथों में चाकू, कुल्हाड़ी और धारदार दाव था।
तब लुटेरों में से एक लंबे लड़के ने कहा - अंकल, क्या फर्क पड़ता है ? हम भी तो ग़रीबी और मजबूरी के कारण यह लूटपाट का काम करते हैं। अमूमन हर व्यक्ति या अधिकांश व्यक्ति कहीं न कहीं गलत हैं। तुम्हें देखकर नहीं लगता कि तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो। तुम्हारे इस सजीले, डील-डौल वाले शरीर के अंदर भी एक धूर्त व्यक्ति हमें नजर आ रहा है।
गंदे हैं किसी के विचार तो गलत हैं किसी के काम। हो सकता है कि तुम हम लोगों से भी गिरे हुए इंसान निकाल जाओ।
भगवान की नजरों में सब कोई बराबर है। पर इंसान ही भेदभाव करता है। इसने ही ये बुराई व कचरा दिल और दिमाग तक फैला दिया है। इस मामले में हम चारों भी अछूते नहीं।
फेरीवाले ने कहा- भैया, आज से मैं सही सोचूंगा और सही करूंगा भी। मुझे जाने दें भैया, जाने दें।
लंबू लुटेरे ने कुछ सोच कर कहा -जाओ। तुम्हारे भाग्य अच्छे हैं।
हम तुम्हें छोड़ देते हैं। क्योंकि तुम पर दया आ रही है। तुमने जरूर आज किसी अच्छे इंसान का मुंह देखा है।
फेरीवाला आगे बढ़ने के बजाय पीछे की ओर मुड़ा और तेजी से चल दिया। उसे उस औरत की याद आई जो उसे पानी पिला रही थी। अब वह रास्ते में एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर बहुत कुछ सोचने लगा। फिर कुछ देर के बाद वह उस महिला के घर गया। और उनको आवाज दी। कहा - बहन जी! बहन जी!
तभी वह औरत बाहर आईl उसको देखकर फेरीवाले ने उससे कहा-
बहन जी, मुझे माफ कर दीजिए। मैं नासमझ आपके साथ
भेदभाव किया। आज मुझे बहुत कुछ एहसास हो रहा है कि मैं अब तक समाज के कमजोर तबके
को गलत निगाहों से ही देखता रहा। उसका इतना बोलना था कि उसने देखा कि बगल में ही
लंबू लुटेरा बैठा हुआ है।
अब फेरीवाले को न
आगे बढ़ते बन रहा था और नहीं कुछ बोलते।
उस लंबू ने गंभीर
मुद्रा में उसके पास आकर कहा - अंकल! हम कोई लुटेरे नहीं है। मुझे माफ कीजिएगा।
आपको सही रास्ता दिखाने के लिए हम लोगों ने ऐसा किया था।
फिर भी मैं आपको एक
बात ज़रुर कहना चाहूंगा कि समस्या व्यक्ति की सोच में, भाव में है। बीते हुए कल में जो कुछ भी
भेदभाव समाज के कमजोर तबको के साथ किया गया, उसे अब तो छोड़ दें। वरना हम इंसान होने के लायक नहीं है।
अंतर्मन में झांक कर मेरी बातों को सोचिएगा जरूर। आगे आप स्वयं समझदार हैं।
अब फेरीवाला
निश्चिंत भाव से खड़ा था और कहा - हां बाबू। मुझे अपनी गलती का एहसास हो चुका है।
मैंने अपने व्यवहार से अब तक कई लोगों का दिल दुखाया है। अब अपने अच्छे व्यवहार से
लोगों का दिल जीतूंगा।
फिर उस लड़के ने कहा - यह मेरा ही घर है और ये मेरी माता हैं। कभी भी आपको कोई दिक्कत हो तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं। मेरा शॉपिंग कंप्लेक्स "मिश्रा एंड मिश्रा" इस शहर के मुख्य चौक ‘विजय चौक” पर हीं है।
यह कहकर उसने फेरी वाले व्यापारी को प्रणाम किया और सामने खड़ी कार में बैठकर कहीं चला गया।
(उस महिला के चेहरे पर एक दिव्य शांति थी)।
इतना कह कर वह वहां से आगे की ओर बढ़ गया।
शिक्षा /सबक - दोस्तों, जातिवाद के संदर्भ में मैं कुछ कहना चाहता हूं।
मैंने कुछ लोगों को कुछ खास समुदाय के बारे में यह कहते हुए भी सुना है कि "उनका चेहरा देखकर हीं पता चल जाता है कि वे अमुक वर्ग के हैं। और नजदीक से चेहरा देखने पर उल्टी जैसा महसूस होता है।"
एक इंसान का दूसरे इंसान के प्रति ऐसी घृणा उसे किस हद तक ले जाएगी, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता।
यह कितने अफसोस की बात है एक इंसान जाति के आधार पर दूसरे इंसान को देखकर घृणा कर रहा है। उसे वमन महसूस हो रही है। जबकि ऐसे लोग अपने ही घरों में कुत्ते- बिल्ली आदि को शौच करा रहे हैं, साफ सफाई कर रहे हैं, गोद में बैठा रहे हैं। उससे उनको घृणा नहीं आ रही।
तो क्या इंसान की हालत पशुओं से भी नीचे जा चुकी है?
इसका जवाब है हां। क्योंकि समाज में निम्न सोच के अनेक ऐसे भी लोग हैं जो कुछ खास वर्ग के इंसानों को अभी भी जानवरों से भी बदतर मानते हैं। जबकि जानवरों को गले से लगाया रहते हैं।
परंतु उनकी ऐसी घटिया सोच वास्तव में खुद उन्हें हीं जानवरों से नीचे ला खड़ा करती है।
महान युग पुरुष स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था - "जातिगत भेदभाव समाज के लिए कोढ़ है।"
अभी भी अनेक कथित बुद्धिजीवी लोग जातीय श्रेष्ठता पर विश्वास करते हैं और उस पर अभिमान भी करते हैं।
जरूरत है ऐसी निम्न सोच को बदलने की। सभी इंसान समान हैं। याद रखें, इंसान अपने कर्म से छोटा या बड़ा होता है।
इसलिए सदा अच्छे कर्म करें। जिएं और जीने दें।
धन्यवाद।
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