Sensitive-Emotional Poem on Poor in Hindi

Sensitive-Emotional Poem on Poor in Hindi - "हाशिए का आदमी" दिल को छू लेने वाली कविता है| जो ज़िंदगी का कड़वा सच बयां करती है| 

महान क्रांतिकारी भगत सिंह ने ठीक ही कहा था कि "दुनिया में सबसे बड़ा पाप ग़रीबी है|" ये इंसान से कुछ भी करा सकती है|

 ग़रीब आदमी की ज़िंदगी रोटी से शुरू होती है और रोटी पर ही ख़त्म हो जाती है| पेट से ऊपर मस्तिष्क के बारे में वे सोचना चाहें भी तो सोच नहीं पाते|  कविता कुछ इस प्रकार है -



हाशिए का आदमी


राजा केवल एक दिन के हम,

बाकी दिन बस आम|

तोड़ते हमें हैं ख़ास लोग,

न चेहरा है न नाम|

 

मिलती दुत्कार है पशुओं जैसी,

हैं करते निरंतर काम|

मर्यादा का रखते ध्यान,

पर फिर भी हम बदनाम|


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काम हमारी है पूँजी और

काम रहीम और राम|

काम से बड़ा कुछ भी नहीं,

बस काम ही चारों धाम|

 

अभिजन के लिए देशी घी,

हमारे लिए है पाम|

उनके लिए खुलता है ट्रैफिक

व हमारे लिए है जाम|

 

सेठों को नींद आती नहीं,

लेते लंबा आराम|

हम जैसे रख देते जहाँ सर,

हो जाता विश्राम|


https://simple.wikipedia.org/wiki/File:Ashaji.jpg

 

कार, बंगला होता नहीं,

न मनोरंजन के आयाम|

बस रेडियो के सरगम और

आशा, अंजान, खैय्याम|



हमारा कोई भविष्य नहीं,

अनाथ हम जैसे आवाम|

कहीं कभी भी हो जाती,

जीवन की हमारी शाम|




 

कथा हमारी है अनंत,

हम अधनंगों का ये कलाम|

कुछ भी नहीं रक्षित हमारा,

ज़िंदगी तक है ये नीलाम|

कुछ भी नहीं रक्षित हमारा,

ज़िंदगी तक है ये नीलाम|

-कृष्ण कुमार कैवल्य|


Sensitive-Emotional Poem on Poor in Hindi - "हाशिए का आदमी" से जुड़े शब्दार्थ/भावार्थ - 

  • एक दिन का राजा - इसका अर्थ यह है कि सामान्य जनता/आम आदमी वोट के दिन राजा होता है| क्योंकि इनके वोट से ही  जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं| जो प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, आदि बनते हैं|
  • "हाशिए का आदमी" - समाज के अंतिम छोर पर खड़ा कमज़ोर आदमी के अर्थ में |
  • आशा, अंजान, खैय्याम - मुंबई फ़िल्म उद्योग के जाने माने नाम (क्रमशः महान गायिका, गीतकार और संगीतकार)|
  • तिलांजलि देना -छोड़ देना|
  • ख़ामियाजा - नतीजा, परिणाम|
  • अधनंगा -  हाशिए के लोगों/ग़रीब लोगों के लिए प्रयुक्त शब्द (अधिकांश ग़रीब लोग निर्धनता के कारण अपने शरीर को आधा ही  ढंक पाते हैं )|  

 

Sensitive-Emotional Poem on Poor in Hindi - "हाशिए का आदमी" से संबंधित एक-दो बातें - 

ग़रीब आदमी की सोच भौतिकता से निकलकर आध्यात्मिकता तक नहीं जा पाती| इसके लिए हमारा ही ये क्रूर समाज ज़िम्मेदार है| जब तक आदमी परोपकार को सबसे बड़ा धर्म नहीं समझेगा और अन्याय व अत्याचार की तिलांजलि नहीं देगा; तब तक ये सिलसिला चलता रहेगा|  

याद रखें| इसका ख़ामियाजा समाज के सिर्फ़ वंचित तबके को ही नहीं;  बल्कि पूरी मानव जाति को भारी कीमत के साथ उठाना पड़ रहा है| निष्ठुर लोगों से मैं ये कहना चाहता हूँ कि यदि उपरोक्त बातों को देखने के लिए तुम्हारे पास आँखें हैं; तो देख लो| वरना परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहो| देर से हीं सही; पर तुम्हारी सोने की लंका भी एक दिन अवश्य जलेगी| धन्यवाद्|

 

 

 

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