Sensitive-Poem on Bad-man in Hindi- "बुरा इंसान"
Sensitive-Poem on Bad-man in Hindi- "बुरा इंसान" दुष्ट लोगों पर चोट करती कविता है|
"बुरा इंसान"
चाहिए ढेर सारा गोबर तो,
अपने दिमाग से निकाल लो तुम।
चाहिए ढेर सारा गोबर तो,
अपने दिमाग से निकाल लो तुम।
नहीं इसकी कमी है तुझ में,
जीते जागते कंकाल हो तुम।
सड़ाकर खूब गैस इससे बना लें।
कुछ और गिरे आ सकते हों इसमें,
इसके लिए उनको भी मना लें।
पतन की आखिरी सीमा तक जाएं,
हर कुकर्म शिद्दत से निभाएं।
सफेदपोश सदा ही रहकर,
चरित्र बुरा दुनिया से छूपाएं।
करैत, नाग से भी जहरीले,
कभी भी किसी का
खून तू पी ले।
बढ़ती जा रही तेरी लताएं,
तू खतरनाक कैंसर के टीले।
क्षमा करनी नहीं चाहिए कभी भी,
समाज के लिए कलंक हो तुम।
कानूनी शिकंजा बहुत ज़रूरी,
बतलाते पर निष्कलंक हो तुम।
तुझसे अति श्रेष्ठ रावण, दुर्योधन,
उनके पैर की तू धुली नहीं।
अपनी कब्र खोद रहा दिन ब दिन,
आंखें अब भी तेरी खुली नहीं।
स्वयं को दोहराता इतिहास क्योंकि
मनुज ग़लती बार-बार करता है।
स्वयं को दोहराता इतिहास
क्योंकि
मनुज ग़लती बार-बार करता है।
एक गुनाह का भी खामियाजा
अपनी सारी उम्र वह भरता है।
सारी उम्र वह भरता है।
- कृष्ण कुमार कैवल्य |
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