Sensitive-Poem on youth in Hindi- “युवा किधर?”
Sensitive Poem on youth in
Hindi- “युवा किधर?” आज की युवा
पीढ़ी पर केन्द्रित एक गंभीर कविता हैI इसमें अपने पथ से विमुख होते युवाओं को रेखांकित किया
गया हैI ताकि
वे स्वयं के अन्दर झाँक सकेंI जबकि कविता
में अंत में उन्हें माता-पिता की अद्वितीय महत्ता को बताई गई हैI
प्रस्तुत कविता को जितनी गहराई से पढ़ी जाएगी, यह उतनी ही
अधिक स्पष्ट व रोचक होती चली जाएगीI
मात-पिता से छल करने में,
कई युवा बड़े आगे हैंI
मात-पिता से छल करने में,
कई युवा बड़े आगे हैंI
भोला-भाला छवि दिखाकर,
प्रेम के तोड़ रहे धागे हैंI
बड़ी सफ़ाई से हैं बोलते,
था को थी और थी को थाI
स्मरण सदा सर्वनाम शब्द,
मानो संज्ञा उनको नहीं पताI

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झबरीले बाल संग नैनीताल,
बहुरंगी छतरी में जातेI
जो चाल मर्दों की होनी थी,
मय के कारण वे
मदमातेI
रंग-बिरंगी शीशी हैं लेते,
काफ़ी ऊँचे दाम परI
रखते शान टकराते-जाम
वे अय्याशी के नाम परI
दरकिनार होते मम्मी-पापा,
सोना छोड़ कोयले
पर छापाI
असीम ख्वाहिशें बन रहे हैं सर्प,
और सिर खुजा युवा खो रहे आपाI
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सबसे अच्छे राज़दार और
सर्वश्रेष्ठ साथी हैं मात-पिताI
सबसे अच्छे राज़दार और
सर्वश्रेष्ठ साथी हैं मात-पिताI
हर धड़कन में उनके तुम,
हैं जीते जागते वे
गीताI
हैं जीते जागते वे गीताII
-
कृष्ण कुमार कैवल्यI
Sensitive Poem on youth in Hindi- “युवा किधर?” से संबंधित शब्दार्थ/भावार्थ-
Ø विमुख – हटना, दूर हो जानाI
Ø पराकाष्ठा – आखिरी सीमा, हद, चरम सीमा, सीमान्त (CLIMAX)I
Ø मय - शराब, मद्य, मदिरा (LIQUOR)I
Ø मदमाते – नशे में चूर, मदहोश, मतवालाI
Ø सोना छोड़ कोयले पर छापा - अच्छी चीजों को छोड़ कर तुच्छ
चीजों की ओर आकर्षित होनाI
Ø राज़दार – गुप्त बातों को जानने वालाI
- Sensitive Poem on youth in Hindi- “युवा किधर?” से संबंधित कुछ ख़ास बातें-
उक्त कविता में कई जगह उपमा (ANALOGY) अलंकार का प्रयोग किया गया हैI ताकि पाठकगण अधिक रोचकता महसूस करेंI यह कविता या
किसी भी रचना के लिए आभूषण के समान होते हैंI
कविता में मैंने व्यंग्य/ प्रहसन का भी
प्रयोग किया हैI
और सबसे विशेष बात यह कि इस कविता में ‘गीता’ का आशय आध्यात्मिक ग्रंथ गीता से ही नहीं वरन सारे
पवित्र ग्रंथों से हैI इनसे आदमी सच्चा इंसान बन पाता हैI ये पवित्र
ग्रन्थ हैं- रामायण, गीता, कुरान, हदिस, बाइबिल, गुरु ग्रन्थ
साहिब आदिI इन सबमें अपार ज्ञान हैI जो व्यक्ति इन ग्रंथों की बातों को सच्चे
दिल से अंतरात्मा में उतार लेता हैI और फिर उसके
समान आचरण करता है, तो वो धार्मिक न होकर आध्यात्मिक इंसान बन जाता हैI फिर सारी
इंसानी दीवारें ख़त्म हो जाती हैंI “क्योंकि आध्यात्मिकता व्यक्ति को इंसानियत
की पराकाष्ठा तक ले जाती हैI” जहाँ अपने-पराये के सारे भेद ख़त्म हो जाते हैंI (इस सन्दर्भ में विस्तृत चर्चा फिर कभी.....)I
धन्यवाद्I
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