Heart-Touching Sensitive-Poem on Poverty in Hindi

Heart-Touching Sensitive-Poem on Poverty in Hindi/ग़रीबी पर कविता – एक मार्मिक कविता है| ग़रीबी का अभिशाप पूरी दुनिया में करोड़ों लोग झेल रहे हैं| विकसित देश हों या विकासशील देश, सभी इसे दूर करने के अलग-अलग तरह के दावे करते रहे हैं| किन्तु निर्धनों की स्थिति में कितना सुधार हुआ और कितना हो रहा है, ये हम सभी जानते हैं|

अब उदारीकरण (Liberalization) के दौर की शुरुआत से ही पूरा विश्व पूँजीवाद (Capitalism) की ओर मुड़ चला है| ये पूँजीवाद ग़रीबों का महाभक्षक है| ग़रीबी मिटाने की बातें सदा होती रहती हैं, परन्तु ग़रीब ही मिटते जा रहे हैं| द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद कोरोना प्रभाव के कारण संभवतः वर्ष 2020 निर्धन लोगों के लिए सबसे बुरा वर्ष है|

निर्धन

हाल न पूछो बेबस की,
मर-मर कर जीते हैं रोज़|
ज़िन्दगी उनकी कटती जाती,
होती नहीं निर्धन की खोज|

Heart-Touching Sensitive-Poem on Poverty in Hindi
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किसी सड़क पर कहीं मर गए,
लाश की खोज ख़बर भी नहीं|
पालतु पशु की हालत अच्छी,
कल का इनको डर भी नहीं|


अपने काम में लगे ही रहते,
दुःख-दर्द सदा वे सहते हैं|
बाढ़ग्रस्त है उनका जीवन,
बस इसी नीर में बहते हैं|


दुनिया दिखाते बाइस्कोप में,
नहीं जानते खुद के बारे में|
जीवन अपना बलून में भरते,
नहीं भरते हवा गुब्बारे में|


तपती गर्मी में देते ठंडक,
आइसक्रीम के रूप में|
घुलता ज़हर बहुत हीं इनके,
विद्रूप जीवन के कूप में|


पूरे दिन वे भटकते कभी,
कुछ रूपये हीं मिलते हैं|
जीवन उनका डंवाडोल,
जर्जर वृक्ष सा हिलते हैं|

Heart-Touching Sensitive-Poem on Poverty in Hindi

 Image by mohamed Hassan from Pixabay

ऐसा होता जीवन ग़रीब का,
दाने-दाने को तरसते हैं|
बाहर की दुनिया को छोड़ो,
घर वाले भी बरसते हैं|


पूर्व जन्म का फ़ल मानकर,
खुद को तुष्ट वे करते हैं|
खून पसीना बहता उनका,
कई दुष्ट खज़ाना भरते हैं|


पेट सभी का भरने वाले,
कई बार वे भूखे रहते हैं|
समय बीतता यूँ ही उनका,
तिल-तिल कर वे मरते हैं|


एक रूप नहीं निर्धन का,
चुनौतियाँ कई आती हैं|
आती है एक पुरवईया,
सिस्कियाँ दे जाती हैं|


गला काटते हैं ग़रीब का,
अभिजन बड़ी चतुराई से|
बच निकलते हैं क़ानून से,
अपनी पहुँच, सफ़ाई से|

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इनके दर्द का अंत नहीं है,
सेवा की चादर ये सदा बने|
उपेक्षा करें कभी नहीं इनकी,
अपने ज़मीर की हम सभी सुनें|
अपने ज़मीर की हम सभी सुनें|

***कृष्ण कुमार कैवल्य***


  • Heart-Touching Sensitive-Poem on Poverty in Hindi/ग़रीबी पर कविता –

इस कविता को लिखने के क्रम में मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि कुछ गलत सरकारी नीतियां, नीतियों के क्रियान्वयन (implementation) का ठीक से न होना, भ्रष्टाचार, लापरवाही, निर्धनों के प्रति उपेक्षा इत्यादि कारणों से गरीबों की स्थिति और भयावह बनती जा रही है|

विश्व के सभी देशों की नीतियां उन्हें मरने न देने भर की कोशिश में लगी रहती हैं| फलतः स्थितियां  यथावत बनी रहती हैं| वहीं  कई सरकारें गरीबी को बनाए रखने में अपना भला मानती हैं| वे सत्ता में बने रहने के लिए ऐसा करती हैं| क्योंकि गरीबों में चेतना का लगभग अभाव होता है| वे पेट के ऊपर सोंच ही नहीं पाते|

आज ज़रूरत है प्रबुद्ध, संवेदनशील लोगों को जागने की व ठोस कदम उठाने की| अन्यथा ग़रीबों के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है| जब ये रूद्र-रुप (भयावह) में सामने आएँगे, तो सब कुछ जल कर ख़ाक हो जाएगा| याद रहे| सबका वक्त आता है और ज़रूर आता है|….धन्यवाद|

Heart-Touching Sensitive-Poem on Poverty in Hindi/ग़रीबी पर कविता से संबंधित शब्दार्थ/भावार्थ –

मार्मिक – करुणामयी, ह्रदय को प्रभावित करने वाला|
अभिशाप – शाप|
बेबस – लाचार|
ज़िन्दगी का कटना – अभाव में जीवन बितना, मुश्किल से/तकलीफ़ से ज़िन्दगी चलना|
बाढ़ग्रस्त – बाढ़ से प्रभावित, बाढ़-प्रवण क्षेत्र ( यहाँ मुसीबतों से भरे जीवन के लिए यह शब्द प्रयुक्त)|
नीर में बहना – जल/पानी में बहना (मुसीबत भरी ज़िन्दगी में जीते रहने के अर्थ में)|
बाइस्कोप – चित्र दिखलाने वाला यंत्र, चित्रदर्शी|

विद्रूप – भद्दा, कुरूप|
कूप – कुआँ|
डंवाडोल –उथल-पुथल, हलचल भरा, अस्त-व्यस्त|
जर्जर – जीर्ण-शीर्ण, टूटा-फूटा, अति कमजोर|
बरसना – क्रोध/गुस्सा प्रकट करना|
तुष्ट – संतोष, तृप्ति, संतुष्ट|
तिल-तिल कर मरना – ज़िन्दगी नारकीय होना, घुट-घुट कर मरना|
पुरवईया – पूर्व दिशा से चलने वाली एक हवा (वज्रपात, अकस्मात संकट, आफ़त के अर्थ में यहाँ प्रयोग)|
सिस्कियाँ – रुदन, क्रंदन, बर्बादी|
गला काटना – शोषण करना, कठोर अत्याचार करने के अर्थ में|
अभिजन – धनी लोग, पूंजीपति वर्ग, संभ्रांत लोग|
पहुँच – पैरवी|
सफ़ाई – अपने को पाक-साफ़ साबित करने की दक्षता|
सेवा की चादर बनना – सेवा करने हेतु तत्पर/न्यौछावर रहने वाला|
उपेक्षा – नकारने का भाव, अप्रत्यक्ष रूप से निरादर, तिरस्कार|
ज़मीर – अंतःकरण, अंतरात्मा|
क्रियान्वयन – लागू करना, कार्य में लाना, कार्य को सफ़लतापूर्वक करने की विधि|
यथावत – पूर्व की भांति स्थिर, जैसे का तैसा, ज्यों का त्यों|
प्रबुद्ध – ज्ञानी, विद्वान्, चैतन्य, जाग्रत (enlightened) |

Heart-Touching Sensitive-Poem on Poverty in Hindi/ग़रीबी पर कविता से संबंधित कुछ व्याख्या वाले शब्द –

विकसित देश (Developed Countries) – विकसित देशों की श्रेणी में ऐसे देश आते हैं, जो करीब-करीब अपनी सभी आवश्यकताओं को अपने बूते (क्षमता से) हासिल कर लेते हैं| ये देश सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक रूप से अग्रणी होते हैं| इन देशों की विकास दर उच्च होती है| औद्योगिक देशों के रूप में प्रतिष्ठा-प्राप्त ऐसे देशों की प्रति व्यक्ति आय भी अधिक होती है| विकसित देशों की श्रेणी में दुनिया के कुछ देशों के उदाहरण हैं – अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जर्मनी, जापान आदि|

• विकासशील देश (Developing Countries) – ऐसे देश जो विकसित देश बनने की ओर अग्रसर होते हैं, विकासशील देश कहलाते हैं| ऐसे देशों में भौतिक सुखों का स्तर निम्न होता है|

(वैसे विकसित और विकासशील देशों की सौ प्रतिशत सटीक परिभाषा नहीं है)|

• उदारीकरण – उदारीकरण एक पद्दति या रीति है| इसके तहत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक नियमों में ढील दी जाती है| कई बार कुछ नीतियों, नियमों, प्रक्रियाओं इत्यादि को ख़त्म भी कर दिया जाता है|

• पूंजीवाद – यह एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था है, जिसमें उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत/निजी एकाधिकार होता है| यह निजी एकाधिकार किसी एक व्यक्ति के हाथों में भी हो सकता है अथवा व्यक्ति-समूह में भी| पूंजीवाद वस्तुतः एक व्यापक अवधारणा है|

• पेट के ऊपर सोंच नहीं पाना – भौतिकता (भोजन, वस्त्र, घर जैसी चीजों) से ऊपर की बातों पर विचार नहीं कर पाना| अर्थात् जीव, जगत, वैश्विक ज्ञान- विज्ञान, आध्यात्म आदि पर चिंतन- मनन नहीं कर पाना|

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