Poem on Rich & Poor in Hindi
Poem on Rich & Poor in Hindi- यह कविता अमीर और ग़रीब के ताने-बाने को व्यक्त करती है|
समाज को ऐसे अमीरों से
अधिक समस्या है जो अमीर होकर भी इंसानियत के दुश्मन बने हुए हैं| इससे इतर अधिसंख्य ग़रीब उन अमीरों से कहीं बेहतर हैं; जो
सच्चा व अच्छा होने का दावा तो करते हैं|
पर वास्तव में समाज का ख़ून चूस कर मोटे होते रहे हैं|
ग़रीबों का चेहरा सामान्यतया दोरंगा नहीं होता| निःसंदेह निर्धन अपराध भी करते हैं तो सामान्यतया अपनी
मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करने के लिए|वैसे अपवाद तो हर जगह देखने को मिलता है| किन्तु ज़ुर्म तो आख़िर ज़ुर्म ही है| चाहे कोई भी करे| परन्तु दुर्भाग्य यह है कि समाज का अभावग्रस्त, वंचित तबका सलाखों के पीछे चले जाते हैं | जबकि
धनी और पहुँच वाले लोग क़ानून की ख़ामियों से फ़ायदा उठाकर ख़ुद को पाक-साफ़ साबित कर
देते हैं|
दोहरा चरित्र समाज को तेजी से ख़त्म करता जा रहा है|अधिकांश निर्धन ग़रीब होकर भी सच्चे अमीर हैं और अधिकतर
अभिजात्य वर्ग संपन्न होकर भी कंगाल हैं| इन्हीं आयामों को यह कविता व्यक्त करती
है|
अमीर और ग़रीब
सोचते किसे अमीर हो तुम,
पास जिनके पैसे हैं बहुत?
गाड़ी, बंगला, नौकर, चाकर,
सर्वोच्च पद तक है पहुँच?
बड़ी मुश्किल से हैं जो जीते,
वो क्या होते हैं ग़रीब?
भोजन, वस्त्र, आवास आदि,
नहीं होता जिनको नसीब?
इनके उत्तर हाँ में हैं होते,
फ़िर भी ये नहीं हैं पूर्ण|
देखोगे जो दूर तलक तक,
ज़वाब शर्तिया है अपूर्ण|
जिनके दिन पैसे से शुरू
और होते ख़त्म पैसे से|
सोंच विचार के केंद्र में पैसे,
सब कुछ धन ही हो जैसे|
दास पैसे के बने ये रहते,
नहीं इसके सिवा होता कुछ|
हर चीज़ का पैसा पैमाना,
भला रिश्तों की कहाँ पुछ?
किसी भी हद तक गिर जाते ये,
धन-दौलत की ख़ातिर|
ज़मीर नहीं ऐसे अभिजन का,
होते हैं नीच और शातिर|
ऐसे लोग क्या हैं अमीर
जो स्व-परिवार तक सीमित?
और लहु पीते निर्धन का,
अत्यंत और असीमित?
निःसंदेह ये
ही हैं ग़रीब,
ये
दुष्ट और हैं पाजी|
इंसानियत
के हैं ये दुश्मन,
हैं
ये फ़ासी और नाज़ी|
दूसरी तरफ़ -
घोर अभाव में जीने वाले भी,
दिल के जो हैं अमीर|
मानवता के ये पुजारी,
वसंत के हैं समीर|
ऐसे ह्रदय सच्च्चे व अच्छे,
सबके प्रिय हैं होते|
बहुत ही दर्द आ जाए फिर भी,
सहते, नहीं हैं रोते|
किसी लाचार पीड़ित को सड़क पर,
राहत पहुंचाते हैं यही|
जितना संभव होते हैं तत्पर,
मुंह ये छुपाते हैं नहीं |
कर मदद शिलापट्ट पर,
आते ये कभी हैं नहीं|
गुमनाम मुसफिर बनकर रहते,
होते ये यहीं हैं कहीं|
ज़िंदगी के हर मोड़ पर,
मिल जाते लोग हैं ऐसे|
रचते नहीं हैं ये स्वांग,
दिखते हैं वही हैं जैसे|
घोर कलयुग खाई ही खाई,
पर नहीं ख़त्म होगी सच्चाई|
ऐसे लोग हैं सच्चे अमीर,
देखो जिंदा है इनसे अच्छाई|
ऐसे लोग हैं सच्चे अमीर,
देखो जिंदा है इनसे अच्छाई|
***कृष्ण कुमार
कैवल्य***
Poem on Rich & Poor in Hindi से जुड़े शब्दार्थ/भावार्थ -
- ताना-बाना - बुनावट, रचना|
- अधिसंख्य -अधिकांश|
- आयाम - विस्तार|
- शर्तिया - शर्त के साथ|
- पैमाना - मानक, कसौटी|
- ख़ातिर - वास्ते, लिए|
- ज़मीर -अंतरात्मा, अंतर्मन|
- अभिजन - अभिजात्य वर्ग, अमीर वर्ग, समृद्ध वर्ग (Elite Class )|
- शातिर - परम धूर्त, काइयां, चालाक|
- स्व - अपना|
- पाजी - दुष्ट, लुच्चा, लफंगा|
- फासी और नाज़ी - फासीवादी व नाज़ीवादी के लिए प्रयुक्त|
- समीर - मंद-मंद चलने वाली सुन्दर हवा|
- शिलापट्ट - पत्थर की बनी पट्टी, जिसपर नामकरण किया जाता है|
- गुमनाम - लापता, खोया, जिसका अता-पता न हो|
- स्वांग - ढोंग करना, दिखावा करना|
- खाई ही खाई - असमानता, भारी अंतर, अंतर्विरोध आदि अर्थ में प्रयुक्त|
Poem on Rich & Poor in Hindi में प्रयुक्त कुछ अति विशिष्ट शब्दों के अर्थ -
नाज़ीवाद - नाज़ीवाद को नात्सीवाद भी कहा जाता है| नाज़ीवाद जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ़ हिटलर की निरंकुश विचारधारा थी| इसमें शासक की इच्छा के अनुसार सत्ता-संचालन था| जिसमें सरकार की पहल सर्वोच्च थी एवं बाद में जनता का योगदान|
अडोल्फ़ हिटलर द्वारा संरक्षित, पोषित एवं पल्लवित यह विचारधारा कट्टर राष्ट्रहित, आर्य प्रजाति का अभिमान, स्वस्तिक चिन्ह, "जो मित्र नहीं वो शत्रु है", जैसे चिंतन से अभिभूत था| इस विचारधारा पर चलने वाले नाजीवादी (नाज़ी) कहलाए|
जर्मनी में इसके उदय के बाद नाजियों ने 1933 में सत्ता संभाली| एवं उन्होंने जर्मनवासियों को समान अधिकार तथा सम्मान दिलाने का भरोसा दिया| इस तरह अत्यंत लोकप्रिय नेता हिटलर नाज़ीवाद का पर्याय बना|
यहाँ पर मैंने संक्षेप में फासीवाद व नाज़ीवाद के बारे में बताया है| इन्हें विस्तार से जानने के लिए आप विश्व इतिहास की विभिन्न पुस्तकों का पाठ कर सकते हैं | साथ ही इन्टरनेट की मदद( एन्सायक्लोपीडिया, विकिपीडिया आदि) भी आसानी से ले सकते हैं|
धन्यवाद|
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