Sensitive and Sentimental Story in Hindi – “भाई का खिलौना”
Sensitive and Sentimental Story in Hindi – “भाई का खिलौना” सामाजिक मुद्दे पर लिखी गयी कहानी है| यह कहानी अंधविश्वास एवं सामजिक रूढ़ी पर आधारित है, जो व्यक्ति को इनसे बाहर निकलने को प्रेरित करती है| हमें यह याद रखना चाहिए कि जो गलत है, वो गलत है| इससे समझौता नहीं करना चाहिए| वरना पूरा जीवन घुट-घुट कर जीना पड़ता है| आज जरुरत है परंपरा एवं आधुनिकता के बीच सामंजस्य लाने की; ताकि ज़िन्दगी जीना सुगम हो सके|
Sensitive and Sentimental Story in Hindi – “भाई का खिलौना” के पात्र –
सूरज – कहानी का केंद्रीय पात्र|
मुन्नी – सूरज की मुंहबोली बहन|
प्यारेलाल – मुन्नी के पिता|
सुलोचना – मुन्नी की माँ|
दीना देवी – मुन्नी की दादी|
गुड्डी – मुन्नी की बहन|
सोना – मुन्नी की सबसे बड़ी बहन|
छोटू – मुन्नी का भाई|
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Sensitive and Sentimental Story in Hindi – “भाई का खिलौना”
शाम के चार बज रहे थे| शानदार शरीर का धनी नवयुवक सूरज हर रोज़ की तरह शाम में दौड़ एवं कसरत पूरी कर अपने घर लौट रहा था| अपनी शाम की रोज़ की दौड़ से वो खुश तो नहीं था| पर बी.कॉम.(फाइनल) की अहले सुबह की क्लास के आगे वो नतमस्तक था| उसके घर से महज सौ मीटर पहले ही उसकी मुंहबोली बहन मुन्नी का घर था| वहाँ आज काफी ख़ामोशी नज़र आ रही थी| सूरज उस घर के बेटे की तरह था| वह मुन्नी को अपनी बहन से भी ज्यादा प्रेम करता था| मुन्नी की उम्र चार साल से तनिक ज़्यादा थी| वो दिन हो या रात जब कभी भी अपने सूरज भैया को बुलाती, सूरज दौड़ा चला आता| मुन्नी फूलों की पंखुड़ियों जैसी सुन्दर व कोमल बच्ची थी|
मुन्नी की दादी दीना देवी एकदम पुराने ख्याल की गुस्सैल व ज़िद्दी औरत थीं| वे सूरज के सामने भी उसके प्रति उपेक्षा का भाव रखती थीं| कभी- कभार तो अपने पुत्र प्यारेलाल से भी नाराजगी प्रकट करतीं| वे कहतीं कि सूरज का उसके यहाँ दिन-रात आना-जाना उसे तनिक भी अच्छा नहीं लगता है| पराया पराया ही होता है|
इतने सब के बावज़ूद भी मुन्नी का शेष परिवार उसे अपना मानता था| खासकर प्यारेलाल को वो दिन सदा याद रहता था, जब उसके घर से थोड़ी दूरी पर एक कार वाले ने उसकी साईकिल में धक्का मार दिया था| और इस पर प्रतिक्रिया करने पर उल्टे ही उस कार पर सवार दोनों लोग उसे पीटने लगे थे| उस समय सभी लोग तमाशा देख रहे थे| वो सूरज ही था, जिसने उन दोनों की पिटाई की और उनसे क्षतिपूर्ति भी दिलवायी| एक कमज़ोर व निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के लिए ये बड़ी बात थी|
आज अपनी फ़ितरत के विपरीत मुन्नी की दादी सूरज को देखकर नाखुश नहीं हुईं| उसके ख़ास शारीरिक सौष्ठौव के कारण उसे सदा पहलवान कहा करती थीं| वे प्रसन्न मुद्रा में बोलीं – आओ पहलवान बैठो| सूरज ने देखा कि मुन्नी रो रही है और माँ के पास जाने की ज़िद कर रही है| दादी उसे पुचकारते हुए कहती हैं- मुन्नी, तेरी माँ आराम कर रही हैं| उनको तंग मत कर| तुम्हारा भाई आने वाला है| उसे भी राखी बाँधना|
सूरज ने कहा – दादी, ये बात तो केवल ईश्वर हीं जानता है|
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फिर उसने मुन्नी को गोद में उठाते हुए कहा – भाई आए या बहन, जो भी हो, स्वस्थ हो|
अब दादी संभलते हुए – हाँ पहलवान| मुन्नी को खुश करने के लिए कुछ भी कहना और सुनना पड़ता है न| सोना और गुड्डी अपनी माँ की सेवा में लगी हैं| तुम तब तक इसे मनाओ-समझाओ| फ़िर दीना सूरज का सामना करने से बचते हुए घर के अंदर चली गयीं|
मुन्नी की दोनों बड़ी बहनें सोना और गुड्डी उससे उम्र में बहुत बड़ी थीं| दिखने में काफ़ी सुन्दर व अपने-अपने कॉलेज में तेज विद्यार्थियों में शुमार थीं| पर उनकी दादी की उपेक्षा ने न सिर्फ उनको बल्कि उनके पूरे परिवार को एक ऐसे सूखे पेड़ के जैसा बना रखा था, जो गिरने ही वाला था|
सूरज इन सब बातों को जानता था, पर चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था| क्योंकि उसके सामने दो परिवार की लकीरें थीं, जो उसे कुछ भी करने से रोकती थीं| वो अपने अंकल प्यारेलाल की खोखली हँसी-ख़ुशी को भी बहुत खूब समझता था| इस सम्बन्ध में वो प्यारेलाल से बातें भी नहीं कर सकता था, क्योंकि उनके बीच एक पीढ़ी का अंतर था| जबकि सूरज के घर वाले तो उस परिवार से नाखुश थे ही| वे मुन्नी के घर की दुर्दशा के लिए प्यारेलाल व उसकी माँ दीना को दोषी मानते थे| इसी कारण से दोनों परिवारों का मिलना-जुलना महज औपचारिक मात्र था|
थोड़ी देर बाद दीना प्लेट भर लड्डू लेकर आयीं| बोलीं – पहलवान, लड्डू खाओ और मुन्नी को भी लड्डू खिलाओ|
स्वयं एक लड्डू लेते हुए सूरज ने मुन्नी को भी एक लड्डू दिया| फिर दादी से कहा – दादी, अब हो गया| ये अच्छी चीज़ नहीं है| फिर वह मुन्नी के साथ कुछ देर खेलकर अपने घर चला गया|
वो मुन्नी के घर जब भी जाता तो सुलोचना आंटी के कँटीले-मुर्झाए शरीर को देख कर तकलीफ़ से भर जाता| उनकी आँखों के नीचे की गहरी कालिमा उनके सेहत का परिचय देती थीं| उनकी सदा की झूठी मुस्कान के आगे वो लाचार था| उनको वो रोज़-रोज़ मरते देख रहा था|
अपने लम्बे अनुभव से उस परिवार का भविष्य उसे अच्छी तरह नज़र आने लगा था| उसने महसूस किया कि “यदि घर बड़े- बुज़ुर्ग ही घर में आग लगाने पर तुले हों, तो परिणाम क्या होगा? ऐसे घर की तबाही को भला कौन रोक सकता है?
समय बीतता गया| मुन्नी को अपने दूसरे भाई के आने का इन्तजार था| क्योंकि दादी ने उसे ऐसा बोल रखा था| अपने पापा से ज़िद कर वो एक बड़ा सा टेडी बियर मंगवाई| पापा के पूछने पर मुन्नी ने कहा कि ये उसके आने वाले छोटे भाई “छोटू” के लिए है| जब छोटू बैठने लायक हो जाएगा, तब वो उसे देगी|
सूरज से एक दिन उसने कहा – भैया, मैंने छोटे भाई के खेलने के लिए एक टेडी बियर मंगवा रखा है|
यह सुन कर सूरज ने कहा – और मेरे लिए?
इसके जवाब में उसने कहा – भैया आपके लिए खिलौना -गुड़िया तो मैं ही हूँ| दादी बतलाती हैं कि आप तो रोज़ शाम को बड़े-बड़े मोटे लोहे से ख़ूब खेलते हैं| फिर आपको इनकी ज़रूरत हीं नहीं|
यह सब सुनकर सूरज को हँसी आ गयी| उसे ख़ुशी से उठा लिया और घुमाने के लिए चला गया| रास्ते में मुन्नी ने अजीब बात बतायी|कहा – दादी कहती हैं कि तेरे भाई के आ जाने से तेरी माँ और तेरे पापा को मुक्ति मिल पाएगी| उसने कौतुहलवश पूछा – भैया, ये मुक्ति क्या है?
सूरज मुन्नी को उसके उम्र को देखते हुए इस प्रश्न का भला क्या उत्तर देता? चुपचाप उसके चेहरे को देखता रहा| फ़िर बोला – मुन्नी, दादी बस ऐसे ही कहानी बना-बना कर तुमसे कुछ-कुछ कहती रहती हैं| तुम सब बस हमेशा खुश रहो|
और फिर एक दिन, सोना दौड़ी-दौड़ी सूरज के घर आई| कहा- भैया, माँ की तबियत बिगड़ रही है| उनको अस्पताल ले चलिए| पापा ने अभी बुलाया है|
सूरज खाना छोड़ कर तुरंत दौड़ पड़ा और एम्बुलेंस बुलाकर उनको अस्पताल ले गया|
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अस्पताल में सुलोचना से पूछताछ व कुछ जांच के पश्चात डॉक्टर प्यारेलाल के पास आयीं| उन्होंने प्यारेलाल पर बरसते हुए कहा – शर्म आनी चाहिए आपको|आप जैसे लोगों ने ही औरत को बच्चे जन्म देने वाली मशीन बना रखा है|
आपकी पत्नी से कड़ी पूछताछ के बाद यह पता चला है कि आपने इनका तीन बार गर्भपात कराया है| और आपकी तीन लड़कियां पहले से हीं हैं| सज़ा आप एवं आप जैसे लोगों को मिलनी चाहिए, जिन्होंने समाज को गंदा कर रखा है| पर सज़ा आपकी पत्नी भुगत रही है| उसका ब्लड प्रेशर लो है, हिमोग्लोबिन कम है, पल्स गिरता जा रहा है| जाँच में कई समस्याएँ नज़र आ रही हैं| उनका तत्काल ऑपरेशन करना होगा|
कागज़ी औपचारिकताएं पूरी करने हेतु प्यारेलाल सिर झुकाए वहाँ से चला गया| सूरज काफ़ी दुखी होकर चुपचाप सब देख रहा था|
देर रात खबर मिली कि पुत्र का जन्म हुआ है| खून की ज़रूरत पड़ने पर सूरज ने अपना रक्त देकर ‘ब्लड एक्सचेंज’ भी करवाया|
अगले दिन सुबह सूरज अपने छोटे भाई को देखकर काफ़ी खुश हुआ| चाची सुलोचना से उसने कहा – आंटी मैं शाम को चला आऊंगा| आप किसी बात की चिंता न करें| आप बिलकुल ठीक हो जाएंगी|
सुलोचना ने आँखों में आंसू लिए कहा – सूरज, तुम सच में मेरे पहले बेटे हो|
सूरज भावुक हो गया| बिना एक शब्द बोले सिर्फ़ सिर हिलाया| फ़िर उनको प्रणाम करके घर चला गया|
सूरज ने अपने घर जाने से पूर्व मुन्नी को छोटे भाई के आने की सूचना दी| यह सुनकर मुन्नी सूरज से लिपट गयी| गुड्डी की आँखों में ख़ुशी के आंसू थे| उसकी दादी ख़ुशी से चहलकदमी करने लगीं, किन्तु एक बार भी बहु सुलोचना के बारे में नहीं पूछा|
अभी दिन के एक ही बजे थे कि सूरज का मोबाईल बज़ उठा| सन्देश सुनते ही सूरज तुरंत अस्पताल गया, पर देर हो चुकी थी| सुलोचना का देहांत हो चुका था|
घर पर अब काफ़ी मायूसी रहती थी| मुन्नी हमेशा माँ को खोजती थी और अक्सर रोती रहती थी| एक दिन उसने दादी से कहा – दादी, माँ को बुला दो| मुझे माँ चाहिए|
उसकी दादी नवजात बच्चे के रुदन से परेशान रहती थीं| बच्चे को न्यूमोनिया हुआ था और वो ईलाजरत था| सोना, गुड्डी और स्वयं दीना उसकी देखभाल किया करते थे| उन्होंने गुस्से में कहा – देख| तुम्हारी माँ बहुत दूर चली गयी हैं| अब वो नहीं आएंगी| तुम्हारे लिए अभी भाई लाई हूँ| कुछ दिन बाद नयी माँ भी ला दूंगी| वो तुम्हें बहुत प्यार करेगी|
यह सुनकर मुन्नी ने कहा – दादी, क्या आपकी तरह?
बाल-मन को दीना अच्छी तरह समझ गयीं| उन्हें काठ मार गया| वो टूट चुकी थीं| बस ऊपर से स्वयं को तथा परिवार को हिम्मत देने में लगी रहती थीं| मुन्नी को गोद में लेकर दहाड़ मारकर वे रोने लगीं| उन्होंने मुन्नी से कहा – मुन्नी, तुम सब के दुखों का कारण सिर्फ़ मैं हूँ| मैंने सब कुछ बर्बाद कर दिया है| तुम्हारे पापा जब ड्यूटी से आएँ, तो उनसे कहना कि हो सके तो वो मुझे माफ़ कर दे| मेरे बड़े पोते सूरज से कहना कि मेरे मरने पर अगर वो मुझे आग देगा तो मैं समझूंगी कि उसने मुझे माफ़ कर दिया| यह कहकर वे अपने कमरे में जाने लगीं| गुड्डी यह सब सुनकर रो रही थी| कहा – दादी सब ठीक हो जाएगा| उसने उनको समझाना चाहा, पर उन्होंने कहा कि वो सोने जा रही हैं|
उस दिन मोना कॉलेज गयी हुई थी| दोनों बहनों ने एक-एक दिन कॉलेज जाना तय कर रखा था, ताकि छोटे भाई की देखभाल की जा सके|
अब गुड्डी कुछ अनहोनी होता महसूस कर मुन्नी को घर में छोटे भाई के पास बैठा दिया और सूरज के यहाँ तुरंत चली गयी|
मामला को जान कर सूरज ने कहा कि अब दादी पर दिन-रात निगरानी रखनी होगी|
फ़िर तुरंत सूरज उनके घर पहुंचा| घर के अन्दर जाने पर गुड्डी ने देखा कि दादी अब दरवाज़ा भी बंद कर चुकी हैं| काफ़ी आव़ाज देने पर भी जब उन्होंने दरवाज़ा नहीं खोला, तब सूरज अपने घर से बड़ा हथौड़ा लाया| उसके पिताजी-माँ तथा बहन भी दौड़े आए| दरवाज़ा तोड़ा गया| दादी पंखे से लटकी मरी पड़ी थीं| सभी जोर-जोर से चिल्ला कर रोने लगे| इसी बीच पड़ोस के भी कई लोग आ गए| सब कुछ बर्बाद सा नज़र आ रहा था| इस बीच कुछ क़ानूनी कार्रवाईयों का भी सामना करना पड़ा| अगले दिन सूरज ने दादी का अग्नि-संस्कार किया|
शाम छह बजे सभी शमशान-घाट से वापस आए|पापा की राह देख रही सोना ने उनसे कहा कि छोटू दूध नहीं पी रहा है| तुरंत डॉक्टर को बुलाया गया| डॉक्टर ने उसे मृत बताया| अब समाज के लोग भी भौचक थे कि प्यारेलाल के घर ये क्या हो रहा है?
प्यारेलाल पागल सा होकर कह रहा था कि अब वो जीना नहीं चाहता|
सूरज ने उनको गले से लगाकर कहा – पापा, क्या मैं आपका बेटा नहीं?
“पापा”, यह शब्द पहली बार सूरज के मुंह से सुनकर प्यारेलाल उससे ज़ोर से लिपट गये| कहने लगे –बेटा, इस घर को बचा लो|
मुन्नी सब को रोता देखकर रोने लगी| कुछ देर बाद सोना ने रोते हुए मुन्नी से कहा – हमारा छोटा भाई माँ के पास जा रहा है| ये अब यहाँ नहीं रहेगा| माँ ने उसे अपने पास बुला लिया है|
तब मुन्नी ने कहा – मैं भी माँ के पास जाउंगी| यह सुनकर गुड्डी ने उसे गोद में उठा लिया|
उस शिशु के अंतिम-संस्कार में इलाके के अनेक लोग शामिल हुए| यह परिवार दूर-दूर तक विशेष चर्चा का विषय बन गया|
जब मृत शिशु को लेकर सभी चले गए तो मुन्नी को कुछ याद आयी| वह दौड़ी-दौड़ी घर में गयी और अन्दर से उसने टेडी-बियर लाया| फिर गुड्डी से उदास होकर कहा- मेरे छोटू का ये खिलौना तो घर में ही रह गया| दीदी, इसे जल्दी सूरज भैया को दे आओ|
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गुड्डी ने रोते हुए कहा – मुन्नी, मैं रोड के किनारे झाड़ियों में इस टेडी-बियर को रख देती हूँ| माँ इसे छोटे भाई को दे देंगी|
तब मुन्नी ने कहा – ठीक है| अपने भाई के खिलौने को मैं ही ले जाउंगी| यह कहकर वो घर से निकली और थोड़ी दूर जाकर झाड़ियों में उस टेडी-बियर को रख दिया| और सिसकियाँ भरते हुए कहा – प्यारे भाई, तुम्हारे लिए मैंने यह खिलौना रखा था| तुम इससे ज़रूर खेलना और मुझे कभी मत भूलना| पास ही खड़ी गुड्डी यह सुनकर फफ़क-फफ़क कर रोने लगी| फ़िर उसे गोद में उठा लिया और घर की ओर चल पड़ी|…….
===कृष्ण कुमार कैवल्य===
Sensitive and Sentimental Story in Hindi – “भाई का खिलौना” से जुड़े शब्दार्थ/भावार्थ
रूढ़ी – आधार-विहीन, तथ्य-विहीन पुरानी मान्यताएं|
सुगम – आसान|
मूकदर्शक – चुपचाप सब कुछ देखना|
टेडी-बियर – एक प्रकार का रीक्ष-खिलौना|
औपचारिकता – लौकिकता, शिष्टाचार|
चहलकदमी – इधर-उधर चलना/घुमना|
मायूसी – उदासी|
काठ मारना – स्तब्ध रहना, भाव-शून्य हो जाना|
टूट जाना – हार जाना, निराश होना|
दहाड़ मारकर रोना – जोर-जोर से रोना, चिल्ला-चिल्ला कर रोना|
अनहोनी – अनचाहा, अशुभ, कुछ बुरा|
अग्नि-संस्कार –शमशान-घाट में मृतक के लिए किया जाने वाला अग्नि-सम्बन्धी कार्य|
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