Inspirational Hindi Poem "पूँजीवाद-बनाम-समाजवाद"

Inspirational Hindi Poem “पूँजीवाद-बनाम-समाजवाद” एक ऐसी कविता है जो पूँजीवाद एवं समाजवाद के द्वन्द्व को प्रस्तुत करती है| साथ ही व्यक्ति, समाज व राजनीति पर पूँजीवाद के पड़ने वाले प्रभावों को भी यह रेखांकित करती है| गंभीर विवेचना वाली यह कविता हर चिंतनशील व्यक्ति को कुछ अलग एहसास कराएगी|


पूँजीवाद बनाम समाजवाद

पूँजीवाद का सगा न कोई,
इसमें नहीं इंसान|
वश चले इनका गर तो
बेच दें ये भगवान|


इसमें होता शोषण ही शोषण,
निर्धन जन बस यंत्र हैं|
ख़ुद को ज़िंदा भर रख पाते ये,
कहने को स्वतंत्र हैं|


खोने को नहीं होता पास कुछ,
पाने को संसार है|
सर पे कफ़न बांध लें गरीब जो
बुर्जुआ की हार है|


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हर सीमा अभिजन हैं लांघते,
सर्वाहारा उनका आहार|
कीटों जैसा जीवन गरीब का,
कभी भी बुझने को तैयार|


भक्षण कर रहे मुट्ठी भर लोग,
देश का नुकसान कर|
खड़ा मौन देश देख रहा है
निर्दोष स्वयं को मानकर|


बड़ा निष्ठुर है पूँजीवाद ये,
तार-तार कर रहा रिश्ता|
भोगवाद है केंद्र में इसके
बदहाल, बेहाल इसमें पीसता|


नए वर्ग कई धनाड्यों के,
इनसे होते हैं नेता पोषित|
चुप रहते ये शासक राजा,
होते रहते हैं शासित शोषित|


सिद्धांत रहित इस राजनीति में
सत्ता ही परम धरम है|
हर हद को पार कर जाना
बन गया इनका करम है|


जब भी आ जाता चुनाव है,
जनसामान्य का होता है गायन|
बन जाता है सर्वसाधारण,
इनके लिए लक्ष्मी-नारायण|


वमन दूध का करने वाले,
करते हैं नीतियों को नियंत्रित|
और रहते हैं सत्ताधारी
ऐसे मुट्ठीभर लोगों पर मोहित|

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निश्चित बढ़ेगा पूँजीवाद ये,
कदम इसके न रूकेगा|
जब घड़ा भरेगा पूरा,
क्रांति से तब रुकेगा|


लेनिन, सुभाष या मार्क्स को पढ़ो,
समझो उनका वाद|
अश्फ़ाक़, भगत, आज़ाद का नारा,
इंक़लाब ज़िन्दाबाद|


अंग्रेजों से मुक्ति मिली,
अब अमीर बने अंग्रेज|
शासक-शोषित सब चुप हैं खड़े,
बड़ा ये है हैरतअंगेज|


भूखों नंगों की फ़ौज बढ़ रही,
जल्द समय वो आएगा|
वर्ग-विहीन समाज बनेगा,
धन्नों का दिन जाएगा|

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रोज़-रोज़ मरने से अच्छा
एक दिन मरना अच्छा है|
दीन ही अभय बन पाता है,
होता उसका युद्ध सच्चा है|


असीम शक्ति है तुममें भी,
अनंत लक्ष्य को पा जाओ|
भर दो चेतना अपने अन्दर तुम,
सर्वोच्च शिखर पर बस जाओ|


अपने पूरे अधिकार को पाओ,
या फिर तुम मर मिट जाओ|
{आग में वैसे जलते रोज़ तुम,
आग के गोले खा जाओ|}-2

===कृष्ण कुमार कैवल्य===

 

Inspirational Hindi Poem “पूँजीवाद-बनाम-समाजवाद” से जुड़े शब्दार्थ/भावार्थ-

 गर – यदि, अगर|
बुर्जुआ – अमीर वर्ग, पूँजीपति|
सर्वाहारा – आम आदमी, सर्व साधारण(गरीब वर्ग भी शामिल)|
भक्षण – खाना (यहाँ देश के संसाधनों को लुटने के अर्थ में)|
निष्ठुर – निर्दयी, दया रहित|
तार-तार करना – नष्ट करना, बर्बाद करना, चोट/आहत करना|
भोगवाद – केवल उपभोग में विश्वास|
धनाड्य – अमीर वर्ग, पूँजीपति वर्ग|
शासित – जिस पर शासन किया जाता है|
लक्ष्मी-नारायण – सर्वेसर्वा, सब कुछ होने के अर्थ में प्रयोग|
दूध का वमन करने वाले – पूँजीपतियों के लिए प्रयुक्त|
सुभाष – नेताजी सुभाष चन्द्र बोस|
इंक़लाब – क्रांति, व्यवस्था में परिवर्तन|
ज़िन्दाबाद – अमर रहे, जीवित रहो|
हैरतअंगेज – आश्चर्य|
वर्ग-विहीन समाज – बिना किसी वर्ग का समाज|
धन्ना – अमीर, धनवान|
दीन – निर्धन, ग़रीब|
आग के गोले खाना – संकट को समाप्त कर देना|

अश्फ़ाक़ – महान क्रांतिकारी अश्फ़ाक़ उल्ला खां|
भगत –  महान क्रांतिकारी भगत सिंह|
आज़ाद – महान क्रांतिकारी चन्द्र शेखर आज़ाद|
(अश्फ़ाक़ उल्ला खां, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद – ये सभी आज़ादी के दीवाने इंडियन सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक गुप्त क्रांतिकारी संगठन के सदस्य थे, जिसके कमांडर इन चीफ चन्द्रशेखर आज़ाद थे |यह संगठन अखिल भारतीय स्तर पर कार्य करता था| इसका मुख्य उद्देश्य था – भारत को आज़ाद कर एक शोषण-मुक्त एवं भय-मुक्त विकसित समाजवादी देश का निर्माण करना )|


 Inspirational Hindi Poem “पूँजीवाद-बनाम-समाजवाद” के पाठकों के लिए  भगत सिंह के कुछ प्रेरक कथन/नारा  –

1. राख का हर एक कण, मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं, जो जेल में भी आज़ाद है।।
2. “इंक़लाब ज़िन्दाबाद|” 
3. सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है| देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।।….


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