Lyric on ‘Human Nature’ in Hindi / ‘इंसान का स्वभाव’
प्रस्तुत गीत ‘इंसान का स्वभाव’(Lyric on ‘Human Nature’ in Hindi) व्यक्ति की प्रकृति एवं गिरते मानवीय मूल्यों पर लिखा गया है| मैं एक काल्पनिक नायक/नायिका के माध्यम से इस गीत को लिखित रुप में पेश कर रहा हूँ| इंसान के विभिन्न नकारात्मक आचार, विचार, व्यवहार तथा इस आधार पर उसके कृत्यों को संक्षेप में गीत के रुप में पिरोने की ये मेरी एक कोशिश भर है| यहाँ प्रकृति के साथ भी व्यक्ति के स्वभाव को चित्रित किया गया है|
इस गीत के कई शब्द या वाक्यांश ऐसे हैं जिसके अर्थ सामान्य प्रतीत होंगे| हालांकि उसके वास्तविक अर्थ काफ़ी कुछ अलग भी हैं| ऐसे शब्द उपमा देने के लिए भी लिखे गये हैं| अतः सभी पाठकों से ये मेरा आग्रह है कि इस गीत को गाते/पढ़ते समय उपर्युक्त बातों का ध्यान रखें|
गीत – ‘इंसान का स्वभाव’ (Lyric on ‘Human Nature’ in Hindi)
Image by azazelok from Pixabay
{ टूटे पंख हंसों के मिलने लगे हैं| }-2
कौवे भी अब उनकी चाल चलने लगे हैं|
हवा का रुख कैसे समझे भला कोई,
{ लोगों की तरह ये भी अब बदलने लगे हैं| }-2
टूटे पंख हंसों के मिलने लगे हैं|
कौवे भी अब उनकी चाल चलने लगे हैं|
{ ग़ौर से देखो इन जीवों को| }-2
विश्वास हो रहा नहीं है मुझको|
दूजे की ख़ातिर जान देने वाले,
{ इंसान को ज़िन्दा अब ये खाने लगे हैं }-2
टूटे पंख हंसों के मिलने लगे हैं|
कौवे भी अब उनकी चाल चलने लगे हैं|
{ धरती की फ़ित्रत है यहाँ पर }-2
देती ये सदा नहीं लेती है|
बदल नहीं सकता आदत कुदरत|
{ पर लोगों के हाथों ये घुट जाने लगे हैं| }-2
टूटे पंख हंसों के मिलने लगे हैं|
कौवे भी अब उनकी चाल चलने लगे हैं|
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{ इंसान न सोंचा था अब वो हो रहा है| }-2
गरिमा अपनी पूरी अब वो खो रहा है|
कैसा समय आया है ये ज्ञान से परे,
{लोग सभी अच्छे अब झुक जाने लगे हैं| }-2
टूटे पंख हंसों के मिलने लगे हैं|
कौवे भी अब उनकी चाल चलने लगे हैं|
{ मेहनत पहले थी सफलता की कुंजी| }-2
प्रेम-भरोसा था जीवन की पूंजी|
सब-कुछ लुटाने की चाहत तब होती थी,
{ अपने भी अपनों से अब लुट जाने लगे हैं }-2
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{ टूटे पंख हंसों के मिलने लगे हैं| }-2
कौवे भी अब उनकी चाल चलने लगे हैं|
हवा का रुख़ कैसे समझे भला कोई,
{ लोगों की तरह ये भी अब बदलने लगे हैं| }-2
{ कौवे भी एक नयी चाल अब चलने लगे हैं| }-2
--—कृष्ण कुमार कैवल्य-----
Lyric on ‘Human Nature’ in Hindi से जुड़े शब्दार्थ –
धरा – पृथ्वी, धरती
फ़ित्रत – आदत, स्वभाव
कुदरत – प्रकृति
परे – दूर
रुख़ – दिशा, चेहरा
ग़ौर – ध्यान
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