Sensitive Poem on Corona in Hindi / कोरोना पर कविता

Sensitive Poem on Corona in Hindi एक सामयिक एवं ज्वलंत रचना है| आज कोरोना से लगभग समूचा विश्व त्रस्त है| द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद पहली बार ऐसी विकराल परिस्थिति संसार के सामने आई है| इस महामारी से सारे देश मजबूती से मुकाबला कर रहे हैं| आशा है कि जल्द ही ये मुसीबत भी ख़त्म हो जाएगी| कोरोना और इंसान के इस जंग पर आधारित प्रस्तुत है मेरी ये संवेदनशील कविता –




Image by Gerd Altmann from Pixabay


कोरोना और हम
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वुहान शहर से फैला कोरोना,
विकराल है इसका वेश|
पूरी धरा को नापा इसने,
शेष रहे कुछ देश|


कर इंसान का देह नियंत्रण,
करता है ये अपना पोषण|
जैसे विकसित कुछ देश हैं करते,
कमजोर देशों का शोषण|


छुप रहा मानव के अन्दर,
दवा नहीं है इसका|
रहना हमें है घर के अन्दर
बचाव ही राह है जिसका|


कोरोना प्रभाव के कारण
बंद हुआ है देश|
लोगों की जान बचाने हेतु
दिए गए उचित आदेश|


रहो घर में बाहर न जाओ,
करो बंद गृहेतर काज|
दुश्मन सबके खून का प्यासा,
नहीं इसका है ईलाज|


मंदिर-मस्जिद सब बंद पड़े,
रक्षा का भार है जिस पर|
वही उभरकर सामने आया,
बन सशक्त वो डॉक्टर|


राजा-रंक सब इसकी जद में,
चार्ल्स, जॉन्सन या कबाड़ी|
हद कर दी दुनिया में इसने,
पड़ा है सब पे भारी|


हानि इतनी हो रही है जग में,
शव हेतु कंधे हैं कम|
कब्रिस्तान में जगह कम पड़ रही,
कब समझेंगे हम|


रही ऐसी ही बेहोशी तो
होश कभी न आएगा|
इस छुपे बैरी के कारण
दुनिया से तू जायेगा|

Image by Queven from Pixabay


कुदरत को उजाड़ने वाले
आज घरों में बंद हैं|
अंधी दौड़ के जीवों की
गति पड़ गयी मंद है|


चूहे, चमगादड़, कुत्ते, बिल्ली
जैसे जीव न खाओ|
है भारत का सन्देश,
घर अच्छी चीज ही लाओ|


शत्रु है बलवान अगर तो
दो कदम पीछे हट जाओ|
और उपलब्ध सारे समय को
खुद की ताकत में लगाओ|


शक्ति अपार है भारत की
कायम रखा है धीर|
दुर्गति हो रही उन देशों की
जो रहे नहीं गंभीर|


बचा रहे जवानों को ये,
छोड़ रहे बुजुर्गों को|
कोस रहे हैं जमकर ये,
पिछले अपने तजुर्बों को|


खून के आँसू खूब रो रहे
यूएस., इटली, स्पेन|
घर के अन्दर रहकर इसके
तोड़ रहे हैं चेन|


हो सकता ये साजिश हो कोरोना,
हथियार किसी का बना हो कोरोना,
पर लोग मर रहे हैं आज,
दुनिया पर गिरी है गाज|


बदनामी से बचने हेतु
छुपाया हो इसको उसने तब|
विश्व प्रसार कराया उसने,
कराह रहा जग देखो अब|


किया प्रयोग जैविक अस्त्र का
हुआ बहुत संतुष्ट|
अपने वित्त-पोषण से करता
कई संगठनों को पुष्ट|

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बिना विश्व-युद्ध के ही इसने
किया दुनिया पर घात|
विकसित देश भी खूब खा गए
इस देश से मात|


जीवों की संरचना में
ये बदलाव भी करते हैं|
वायरस बैंक बनाकर फिर
प्राण लोगों के हरते हैं|


हम दुखी तो अन्य सुखी क्यों?
 हों जब ऐसे विचार|
ऐसे घाती मित्रों से
कैसे हो सदव्यवहार?


कोरोना कई सबक भी लाया,
लोगों ने कुछ इससे भी पाया|
इंसान को नहीं परवाह मूल्य की,
इसका मूल्य लेने ये आया|


ऐसे भी दिन इसने दिखाए,
मदद केंद्र बना थाना|
हाथ जोड़कर गीत भी गाए,
दिया स्वास्थ्य और खाना|


पशु-पक्षी सड़कों पर आये,
नदियों में निर्मलता आई|
दूषित वायु के स्तर में
बहुत कमी हम सबने पाई|


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भागमभाग की दुनिया में
सबने कुछ स्थिरता पायी|
आत्म-चिंतन का मौका पाया,
महत्ता घर की समझ में आयी|


खूब चल रहे लॉकडाउन, क्वौरंटीन,
आइसोलेशन जैसे शब्द|
न कभी कोरोना आए,
बने न ये प्रारब्ध|
बने न ये प्रारब्ध||

                                                             ***कृष्ण कुमार कैवल्य***.


Sensitive Poem on Corona in Hindi से जुड़े शब्दार्थ –

  • गृहेतर – घर से बाहर
  • गाज – मुसीबत, आफ़त
  • प्रारब्ध – भाग्य के अर्थ में प्रयोग

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