Funny-Sentimental Story in Hindi/ जादूगर पर कहानी
वो जादूगर
Funny-Sentimental Story in Hindi/ जादूगर पर कहानी एक बहुत ही रोचक कहानी है| हम रोजाना विभिन्न घटनाओं से रूबरू होते हैं | परन्तु कुछ घटनाएं हमें सदा याद रहती हैं | वे घटनाएं हमारे अन्तः मन को छू जाती हैं, हमें कुछ अलग एहसास कराती हैं| प्रस्तुत कहानी में हास्य रस है एवं इंसान के मनोभावों को प्रकट किया गया है| ये मनोभाव हर व्यक्ति में अपने-अपने व्यक्तित्व के अनुसार होते हैं| कहानी कुछ इस प्रकार है-
कहानी के मुख्य पात्र –
- बासु (बैंक का कर्मचारी)|
- अभिजीत चटर्जी (बैंक का ए.जी.एम.)|
- विनायक (जादूगर)|
अन्य पात्र –
- दीनू (जादूगर का सहायक)|
- बिट्टी कोहली (बैंक का गार्ड)|
- बीरेन (संदेशवाहक)|
- वीरेंद्र राजदान (बैंक कर्मचारी)|
- मिस पूजा (बैंक कर्मचारी)|
- दिवाकर पटनायक (बैंक कर्मचारी)|
- राहुल (कैंटीन बॉय)|
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हर दिन की तरह आज भी बैंक में सामान्य कामकाज चल रहा था| शनिवार होने के कारण बैंक का कार्य आधे दिन तक ही चलना था| ये उन दिनों की बात है, जब बैंकिंग कामकाज शनिवार को आधा दिन ही हुआ करता था|
बासु उसी बैंक का कार्मिक था| वो अपने काम का पक्का व सीधा-साधा इंसान था| इस कारण सभी के बीच उसका विशेष सम्मान था|
बैंक परिसर से ही सटा एक कैंटीन था| रोज की तरह वहाँ पर अपनी ब्लू रंग की वेस्पा स्कूटर खड़ी कर बासु बैंक के गेट से प्रवेश कर ही रहा था कि बैंक के गार्ड बिट्टी कोहली ने एक आदमी को वहीं पर रोका| काला कोट पहने उस आगंतुक के पास एक बड़ा सा काला बैग भी था|
गार्ड – रुकिए! क्या है बैग में?
आगंतुक – जादू दिखाने का सामान| मैं जादूगर हूँ|
गार्ड – (हरकत में आते हुए) सावधान! बैग खोलो|
आगंतुक थोड़ा सोचता है| तभी गार्ड कहता है – बैग जल्द दिखाओ, वरना हम लोग ही तुम्हें जादू दिखाने के लिए मजबूर हो जाएंगे|
आगंतुक बैग के सामान को दिखाता है| गार्ड को बैग में कुछ अजीब चीजें दिखाई पड़ीं, जिनमें एक चाकू भी था|
गार्ड – (कड़क होकर) जाओ भाई जाओ| तुम अन्दर नहीं जा सकते| ये ऑफिस तुम्हारे काम की जगह नहीं|
चेहरे पर अजीब शिकन लाते हुए जादूगर तत्काल बासु को वहाँ खड़ा देख कहता है – भाई साहब, क्या यहाँ के किसी स्टाफ से मेरी बात हो सकती है?
बासु – कहिए| मैं यहीं का स्टाफ हूँ|
जादूगर – साहब! मेरा नाम विनायक है| मैं एक गरीब जादूगर हूँ| यहाँ कुछ खेल दिखाना चाहता हूँ| आज शनिवार है| बैंक हाफ-टाइम के बाद बंद हो जाएगा| आप मुझ पर एक कृपा करें| बैंक में अपने साहब को मेरी इच्छा बता दें| यदि वे तैयार हो जाएंगे, तो आज मेरे घर चूल्हा जरुर जल पाएगा|
बासु को यह सुनकर दया आई| उसने कहा – ठीक है भाई| (कैंटीन की ओर ईशारा करते हुए) आप इस कैंटीन में जाकर बैठ जाइए| मैं थोड़ी देर में आता हूँ|
यह सुन कर बैंक का गार्ड नाखुशी प्रकट कर किनारे खड़ा हो गया|
करीब 20 मिनट के बाद बासु कैंटीन में आकर जादूगर विनायक की ओर मुस्कुराते हुए कहा – भाई, मैंने अपने ए.जी.एम. अभिजीत चटर्जी से आपके बारे में संवेदना पूर्वक बातें की| उन्होंने कहा कि आप तीन बजे से बैंक कैंटीन में अपनी कला दिखा सकते हैं|
जादूगर का एक सहायक भी वहीं आकर बैठा हुआ था| दोनों यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए|
विनायक – धन्यवाद साहब (उसकी आँखों में कृतज्ञता थी)| तत्पश्चात बासु अपने काम पर लौट जाता है|
विनायक अपने सहायक से – दीनू, ऐसे अच्छे लोग बहुत कम मिलते हैं, जो दूसरों के लिए भी सोंचते हैं| दीनू सिर हिलाता है|
उधर बैंक के सभी स्टाफ को जादू के खेल के बारे में बासु ने संदेशवाहक बीरेन से सूचना भिजवा दी|
अब बैंक का कार्यकाल नियत समय पर ख़त्म हुआ| करीब-करीब सभी स्टाफ कैंटीन पहुंचे| ए.जी.एम. सबसे आगे की लाइन की बीच-सीट पर बैठे थे| विनायक ने सबको प्रणाम और संबोधित कर जादू दिखाना शुरू किया|
ए.जी.एम. के बगल में ही बासु बैठा था| विनायक के संबोधन से वो प्रभावित हुआ| वो मन ही मन सोंचता है – निश्चित ही ये व्यक्ति पढ़ा-लिखा व काफी समझदार है| हालात आदमी को क्या से क्या बना देता है|
विनायक ने दीनू के सहयोग से कई कलाएँ दिखाई| मसलन कुछ कागज़ के करतब दिखाए, वहाँ रखे कुछ सामानों को गायब कर दिया, फिर वापस ला दिया|
अगली कला के रुप में उसने दीनू के बाएँ हाथ को एक मुलायम प्लास्टिक के ढाँचे में रखा| फिर उस ढाँचे को काटकर तीन टुकड़े कर दिए| दीनू का आधा हाथ गायब दिखा|
अब पुनः उसी ढाँचे को एक साथ जोड़कर दीनू के आधे बाएँ हाथ को उस ढांचे से सटाकर रखा| एक लाल कपड़ा वहाँ हिलाया और ढाँचे में से दीनू का पूरा हाथ निकाल दिया| इन करतबों को सभी बड़े कौतुहल से देख रहे थे|
इसके बाद ए.जी.एम. को उसने कहा – साहब आपको कौन सी मिठाई खाना पसंद है?
ए.जी.एम. (संकोच करते व सकुचाते हुए) –‘सन्देश’|
विनायक एक साफ़ खाली डब्बा मंगवाया| उसे उलट-पलट कर सबको दिखा दिया| अब डब्बे पर लाल कपड़ा फेरा एवं उसे एक प्लेट पर उलट दिया| प्लेट पूरी तरह सन्देश से भर गया|
अब उस प्लेट को उसने ए. जी.एम. को भेंट करते हुए कहा – साहब कृपया खाकर स्वाद बताएं| ए.जी.एम. चुप थे| फिर हँसते हुए उन्होंने बासु से कहा – पहले आप खाइए|
बासु ने उनके चेहरे पर चतुराई देखी| उसने सन्देश मिठाई खाई एवं उसकी प्रशंसा करते हुए कहा – सर, इस रायपुर में कोलकाता नहीं बल्कि कलकत्ता की सन्देश-मिठाई की याद आ गई| आप भी लीजिए|
ए.जी.एम. ने भी मिठाई खाई| उनके चेहरे से काफी संतोष झलका| दोनों को खाते देख पास बैठे एक अन्य भारी-भरकम स्टाफ वीरेन्द्र राजदान का मन विचलित हो रहा था|
जादूगर विनायक ने इसे भांप लिया और कहा – साहब आप भी कुछ खा सकते हैं| कहिए, क्या खाएँगे?
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राजदान – समोसे, वो भी गरमा-गरम|
विनायक – हाँ साहब, आपके अच्छे सेहत को देखकर ही आपके पसंद को समझा जा सकता है| अब विनायक ने डब्बे से तत्काल दो समोसे निकाल कर राजदान को दे दिया| राजदान दोनों समोसे को बिना किसी की ओर देखे मुग्ध होकर खाने लगा| उस दिन कैंटीन में समोसे न बनने का मलाल भी उसे अब न रहा|
इसके बाद जादूगर ने डब्बे में हाथ डालकर मन्त्र फूंका और कहा- साहेबान, डब्बा नाराज है| कुछ पैसे मांग रहा है, अन्यथा ये अनिष्ट करने लगेगा|
इसे सुनकर सभी ने हँस कर टाल दिया|
जादूगर ने डब्बे को ज्यों ही उल्टा किया और बस टेबल पर खून फ़ैल गया| ए.जी.एम. को यह देखकर वमन करने जैसे भाव होने लगे| क्योंकि अभी-अभी उन्होंने उस डब्बे से प्राप्त सन्देश मिठाई खाई थी|
राजदान को तो बार-बार उल्टी होने जैसा उफान पेट से आ रहा था| वो मुफ्त के समोसे खाकर पछता रहा था| मन ही मन सोंच रहा था कि कहीं डब्बे की तरह उसके मुंह से भी खून न निकलने लगे|
आनन-फानन में सभी ने 50, 100, …. रुपये निकाले व जादूगर की टोपी में रखवा दिया|
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इस प्रकार कई तरह के करतब दिखाने के बाद विनायक ने ए.जी.एम. से कहा – साहब, जहाँ भी मैं जाता हूँ, वहाँ से प्रार्थना करके एक प्रशंसा-पत्र अवश्य ही ले लेता हूँ|
ऐसा इसलिए ताकि अन्य जगह उसको दिखाकर अपने फन को प्रमाणित तथा विश्वास को साबित कर सकूं| अगर आप भी एक ऐसा ही पत्र मुझे प्रदान करें तो मुझ पर बड़ा एहसान होगा|
ए.जी.एम. ने एक पेपर मंगवाया और उसमें विनायक की जादूगरी संबंधी प्रशंसा की बातें लिख दी| उसमें यह भी लिखा कि इनका फन प्रशंसा के काबिल है| इनकी कला की जितनी प्रशंसा की जाए, कम ही होगी| मैं इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ एवं इस जादूगरी को ताउम्र याद रखूंगा|
यह लिख कर व उस प्रशंसा पत्र पर हस्ताक्षर कर बड़ी ख़ुशी से ए.जी.एम. ने उसे अपने हाथों से विनायक को दिया|
विनायक ने उस पत्र को लिया और चौंकते हुए कहा – अरे साहब यह क्या! आपने अपनी सारी संपत्ति मुझे दे दी| वाह साहब वाह! दानी हो तो आपके जैसा| आज सहसा दानवीर कर्ण की याद आ गयी|
साहब कसम से, मैं जहाँ भी जाऊँगा, आपकी इस उदारता का गुणगान अवश्य करूंगा| उपरवाला भी जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है|
यह सुनते ही ए.जी.एम. को मानो साँप सूंघ गया| तुरत बोल उठे – ऐसा मैंने कहाँ लिखा है? तुम मजाक मत करो|
विनायक – साहब! आप सब कुछ देकर भी अपनी उदारता सभी से छुपा रहे हैं, ये काबिले-तारीफ़ है|
अब ए.जी.एम. का मुंह सूखने लगा| वहाँ रखा आधा जग पानी वे तुरंत पी गए| फिर जेब से रुमाल निकाला और पसीना पोछने लगे|
विनायक – साहब आप नमक कम खाएं| नवम्बर में भी शरीर से पसीना आना किसी गंभीर लक्षण की ओर संकेत करता है|
ए.जी.एम. कुछ बोल नहीं पा रहे थे| उन्होंने अपने विश्वासपात्र बासु की ओर मरते हुए पिता की भांति देखा| बासु उनके मन की पीड़ा को समझ गया और उस पत्र को स्वयं पढ़ना शुरू किया –
मैं अभिजीत चटर्जी, सुपुत्र – श्री धीरेन चटर्जी, पता- (कहकर चुप व अपने ए. जी. एम. के घर का वास्तविक पता उस पत्र पर लिखा देख आश्चर्य से उनकी ओर देखा)|
फिर उनका संकेत पाकर पढ़ने लगा – …कोलकाता, पूरे होश में तथा बिना किसी डर व दबाव के ये घोषणा करता हूँ कि आज दिनांक (फिर ए.जी.एम. को देखा| ए.जी.एम. ने पढ़ने के लिए पुनः ईशारा किया)..को अपनी सारी चल एवं अचल संपत्ति जादूगर विनायक, पता – (उसका पता भी वह नहीं पढ़ता).., को सभी बैंक स्टाफ की उपस्थिति में देने की घोषणा करता हूँ|
अब बासु ने कहा- सर, आपने सच में ऐसा लिखा है, वो भी हस्ताक्षर के साथ|
इधर बासु का पढ़ना ख़त्म, उधर ए.जी.एम. बदहवास नज़र आने लगे| तुरंत संदेशवाहक बीरेन ने पंखा चलाया| ‘साहब को पसीने और अन्य सभी को ठण्ड’ अजीब सा नज़ारा वहाँ बन गया|
जादूगर ने कहा – साहब, इस पत्र को और लोगों से भी पढ़वा कर संतुष्ट हो लें|
कुल चार कर्मचारियों ने उसे पढ़ा| सभी ने वही पढ़ा जो बासु ने पढ़ा था|
जादूगर विनायक अपना सामान बाँधा और बोला – साहब अब मेरा काम ख़त्म| आप सब को धन्यवाद| यदि आप सब मेरे इस खेल से खुश हुए हों तो कुछ ईनाम दें|
यह सुन सभी ने कुछ पैसे दिए| कुछ स्टाफ अपने ए.जी.एम. की तत्कालीन स्थिति से किसी कारणवश काफी खुश दिखे|
विनायक अब ए.जी.एम. के पास गया| वो अर्ध-मृत व मूर्तिमान बने दिख रहे थे| विनायक ने कहा – साहब, आप घबराएं नहीं| आपको दुखी करने वाले इस पत्र को मैं आपके सामने ही फाड़ देता हूँ| यह कहकर उसने उक्त पत्र को फाड़ दिया|
पत्र के फटते ही मानो ए.जी.एम. को संजीवनी बूटी मिल गयी| उन्होंने विनायक को 500 रुपये दिए और बासु को कुछ कहकर अपने चैम्बर की ओर चले गए|
कैंटीन से सभी कार्मिक निकलकर अपने घर जाने लगे| पर बैंक के दो अन्य स्टाफ मिस पूजा और दिवाकर पटनायक पूर्व की तरह वहाँ बैठे रहे| मानो वे एक अलग ही जादू की दुनिया में खोए हुए हों| कैंटीन बॉय ने हँसते हुए खिड़की से कहा – दिवाकर साहब, मैं राहुल| सभी स्टाफ चले गए| कैंटीन बंद करने का समय हो गया है|
यह कहकर वो हर बार की तरह वहाँ से 05 मिनट के लिए हट गया|
अब तक बासु विनायक को अपने साथ लेकर ए.जी.एम. के चैम्बर में जा चुका था|
ए.जी.एम. – भाई, तुम मेरे साथ कोई फ्रॉड तो नहीं करोगे न|
विनायक – नहीं साहब कभी नहीं| आपकी कसम| बस वही वसीयत-पत्र जो आपने मुझे दी थी, उसकी एक अन्य ओरिजिनल कॉपी मेरे पास है|
यह कहते हुए उसने वही पत्र दिखा दिया| ए.जी.एम. ने तुरंत लपककर उसे लिया व फाड़ दिया| अब उनको बड़ा सुकून मिला|
विनायक ने कहा – अब मैं नहीं रुकूंगा साहब| बहुत देर हो रही है| साहब, मैं जादूगर हूँ| उस कागज की दूसरी ओरिजिनल कॉपी पुनः मेरे पास आ गयी है| हम जादूगरों के लिए ऐसा करना असंभव नहीं| आप चाहें तो इसे भी लेकर फाड़ दें, परन्तु ऐसा करने से क्या फायदा? फिर एक अन्य कॉपी तैयार बैठा मिलेगा|
अब ए.जी.एम. पूरी तरह टूट चुके थे| उनके केश भी बिखर चुके थे|
बासु इस समय कुछ कहने ही जा रहा था कि ए.जी.एम. ने (लगभग रोते हुए) कहा – जादूगर भाई, मैं एक-एक रुपया बचाकर यहाँ तक पहुंचा हूँ| मैं कोई रईस घर का भी नहीं हूँ| (थोड़ा सोंचकर) मैं तुम्हारा कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता| तुम अपने इंद्रजाल से अब मुझे बचा लो, अन्यथा मुझे हार्ट-अटैक आ जाएगा|
विनायक ने कहा – साहब जिस प्रकार संपत्ति एक माया है, उसी प्रकार मेरी यह कला भी एक माया है, नजरबंदी का कमाल है| इसमें सच्चाई कुछ भी नहीं|
यह कहते हुए उसने एक कागज़ निकाला और कहा – साहब, ये लीजिए अपना प्रथम या आखिरी प्रशंसा-पत्र, जिस पर आपने अपने हस्ताक्षर किए थे| इसे आप अच्छी तरह देख लें व पढ़ लें|
मरता क्या कुछ नहीं करता? ए.जी.एम. ने उस पत्र को देखा और तुरंत फाड़ कर डस्टबिन में डाल दिया| अब उन्होंने अपनी जेब से 1000 रुपये निकाल कर विनायक को देना चाहा|
इस पर उसने कहा – साहब, मुझे लालची न समझें| इसे रख लें| मेरे जादू का खेल वास्तव में अभी-अभी ख़त्म हुआ| देर से सच बोलने के लिए माफ़ी चाहता हूँ|
ए.जी.एम. – भाई, तुम मुझे सदा याद रहोगे| अब लाइफ में मैं कभी (कहते – कहते रुक गए)….| फिर कहा – मुझे अशांति भी महसूस हो रही है| इसलिए ये पैसे रख लो| मैं इसे भय से नहीं बल्कि अपनी खुशी से दे रहा हूँ| प्लीज! इंकार मत करो| जादूगर विनायक ने पैसे लिए एवं उनको धन्यवाद कहा|
पास ही खड़े बासु के प्रति उसने प्रेम से मस्तक झुकाया और अपने साथी के संग अन्य गंतव्य की ओर चल पड़ा|
***कृष्ण कुमार कैवल्य***
Funny-Sentimental Story in Hindi/ जादूगर पर कहानी से जुड़े शब्दार्थ/भावार्थ –
रूबरू – आमने – सामने, प्रत्यक्ष|
शिकन – भाव|
मसलन – जैसे, उदाहरणार्थ|
अनिष्ट – अशुभ, अमंगल|
वामन करना – उल्टी करना|
छप्पर फाड़ कर देना – बहुत अधिक मात्रा में देना|
काबिले-तारीफ़ – प्रशंसा के लायक|
बदहवास – हतबुद्धि, उद्विग्न|
संजीवनी बूटी मिलना – जीवन लौट आना|
इंद्रजाल – जादू, तिलिस्म, माया|
गंतव्य – जिधर जाना है|
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