Patriotic Poem on "Martyrs" in Hindi / "शहीदों" पर कविता
Patriotic Poem on “Martyrs” in Hindi – इस कविता में ईश्वर से संवाद करते हुए शहीदों की स्तुति की गयी है|इसमें एक भक्त भगवान से शहीदों की महिमा का गुणगान कर रहा है| निःसंदेह शहीदों के बारे में जितना कुछ लिखा या कहा जाए, कम ही होगा|वास्तव में कविता में व्यक्त भाव मेरे ही भाव हैं, जिसे मैं रोज़ महसूस करता हूँ| हो सकता है कि मैं गलत होऊं, किन्तु इस भाव से मुझे अधिक ख़ुशी व आत्मसंतोष मिलता है| मुझे इसी भाव में जीना स्वीकार है| मैं यह कविता देश के शहीदों को समर्पित करता हूँ|
शहीद-स्तुति
जितना भी मैंने तुम्हें जाना,
हे ईश्वर कम ही जाना |
पर शहीदों को निःसंदेह
सदा तुमसे अधिक ही जाना|
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अपने धर्म का पालन करना,
इस हेतु मिट जाना|
इनसे बड़ा कौन धर्मपालक है ?
कुछ ने ही ये जाना|
देश से मुख मोड़कर
करते जो ईश को फूल अर्पित|
हैं समझते वीर यह श्रेयस्कर
देश पर करना शीष समर्पित|
स्वयं को किया बलिदान उन्होंने,
हमारे आज के लिए|
कौन जीता है ऐसी ज़िन्दगी,
देश-समाज के लिए?
सौ साल निष्क्रिय सा जीवन,
है अभिशाप ऐसा जीवन|
जीया उन्होंने शेर सा जीवन,
भले जीया बस एक दिन जीवन|
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आता समय जब बलिदान का,
दुश्मन को ढेर कर जाते हैं|
लहू से सींचकर अपनी मिट्टी को,
माँ का कर्ज चुकाते हैं|
जो कुछ लिखा है पवित्र ग्रंथों में,
जीया शहीदों ने शब्दशः उनको|
बता हे ईश्वर स्वयं ही तू अब,
है इनसे बड़ा भक्त कोई और तुम्हारा?
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इसलिए पूजता हूँ मैं उनको,
पहले तेरी पूजा से|
है अगर ये पाप तो,
तेरी सज़ा स्वीकार है|
है अगर ये पाप तो,
तेरी सज़ा स्वीकार है|
—कृष्ण कुमार कैवल्य---
Patriotic Poem on “Martyrs” in Hindi से जुड़े शब्दार्थ/भावार्थ –
निःसंदेह – बिना संदेह के, बिना शक के|
धर्म-पालन – एक देशभक्त का धर्म पालन है देश के प्रति सच्ची सेवा|वह सेवा चाहे जिस किसी भी रूप में की जाती हो या की गयी हो|
ईश – ईश्वर, भगवान|
अर्पित करना – चढ़ाना, भेंट करना|
शीष समर्पित – प्राण उत्सर्ग कर देना|
निष्क्रिय जीवन – अकर्मण्य जीवन, मृतप्राय जीवन|
ढेर करना – मार डालना, समाप्त करना|
लहू – खून, रक्त|
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