Patriotic Poem on "Martyrs" in Hindi / "शहीदों" पर कविता

Patriotic Poem on “Martyrs” in Hindi – इस कविता में ईश्वर से संवाद करते हुए शहीदों की स्तुति की गयी है|इसमें एक भक्त भगवान से शहीदों की महिमा का गुणगान कर रहा है| निःसंदेह शहीदों के बारे में जितना कुछ लिखा या कहा जाए, कम ही होगा|वास्तव में कविता में व्यक्त भाव मेरे ही भाव हैं, जिसे मैं रोज़ महसूस करता हूँ| हो सकता है कि मैं गलत होऊं, किन्तु इस भाव से मुझे अधिक ख़ुशी व आत्मसंतोष मिलता है| मुझे इसी भाव में जीना स्वीकार है| मैं यह कविता देश के शहीदों को समर्पित करता हूँ|


शहीद-स्तुति


जितना भी मैंने तुम्हें जाना,
हे ईश्वर कम ही जाना |
पर शहीदों को निःसंदेह
सदा तुमसे अधिक ही जाना|

Patriotic Poem on Martyrs in Hindi
 Image by Jai Bhutani from Pixabay


अपने धर्म का पालन करना,
इस हेतु मिट जाना|
इनसे बड़ा कौन धर्मपालक है ?
कुछ ने ही ये जाना|

 

देश से मुख मोड़कर
करते जो ईश को फूल अर्पित|
हैं समझते वीर यह श्रेयस्कर
देश पर करना शीष समर्पित|

 

स्वयं को किया बलिदान उन्होंने,
हमारे आज के लिए|
कौन जीता है ऐसी ज़िन्दगी,
देश-समाज के लिए?

 

सौ साल निष्क्रिय सा जीवन,
है अभिशाप ऐसा जीवन|
जीया उन्होंने शेर सा जीवन,
भले जीया बस एक दिन जीवन|

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आता समय जब बलिदान का,
दुश्मन को ढेर कर जाते हैं|
लहू से सींचकर अपनी मिट्टी को,
माँ का कर्ज चुकाते हैं|

 

जो कुछ लिखा है पवित्र ग्रंथों में,
जीया शहीदों ने शब्दशः उनको|
बता हे ईश्वर स्वयं ही तू अब,
है इनसे बड़ा भक्त कोई और तुम्हारा?

Patriotic poem on Martyrs in Hindi

 Image by waldryano from Pixabay


इसलिए पूजता हूँ मैं उनको,
पहले तेरी पूजा से|
है अगर ये पाप तो,
तेरी सज़ा स्वीकार है|
है अगर ये पाप तो,
तेरी सज़ा स्वीकार है|

—कृष्ण कुमार कैवल्य---


Patriotic Poem on “Martyrs” in Hindi से जुड़े शब्दार्थ/भावार्थ –

निःसंदेह – बिना संदेह के, बिना शक के|
धर्म-पालन – एक देशभक्त का धर्म पालन है देश के प्रति सच्ची सेवा|वह सेवा चाहे जिस किसी भी रूप में की जाती हो या की गयी हो|
ईश – ईश्वर, भगवान|
अर्पित करना – चढ़ाना, भेंट करना|
शीष समर्पित – प्राण उत्सर्ग कर देना|
निष्क्रिय जीवन – अकर्मण्य जीवन, मृतप्राय जीवन|
ढेर करना – मार डालना, समाप्त करना|
लहू – खून, रक्त|

 

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